देशीशब्दकोश /162
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कणइल्ल -- शुक, तोता ( दे २।२१ ) ।
कणई -- लता ( दे २।५ ) ।
कणंगर -- पाषाणमय लंगर ( विपा १।६।१७ ) ।
कणक -- बाण - 'नाराय-कणक-कप्पणि-वासि-परसु ' ( प्र १।२८ ) ।
कणकाली -- अस्तर-विशेष ( ज्ञाटी प १६ ) ।
कणग -- १ ग्रह - विशेष - 'कणगा गिम्हे सिसिरे पंच वासासु सत्त उवहणंति' ( निचू ४ पृ २४५ ) । २ चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) ।
कणय -- १ बाण ( भ २।८९; दे २।५६ ) । २ बिल्व, बेल ( उशाटी प १४२ ) । ३ अवचय, फूलों का चुनना ( दे २।५६ ) ।
कणयंदी -- पाटला, पाढर वृक्ष ( दे २।५८ वृ ) ।
कणिआरिअ -- कटाक्ष, टेढी नजर से देखना, कानी आंख से देखना ( दे २।२४ ) ।
कणिक्क -- मत्स्य की एक जाति ( जीवटी प ३६ ) ।
कणिक्का -- समित, आटा - 'समिता-कणिक्का सा महुघएहि तुप्पेउं मद्दिउं च भगंदले छुभति ते किमिया तत्थ लग्गंति' (निचू १ पृ १०० ) ।
कणिस -- शस्य का तीक्ष्ण अग्रभाग ( उपाटी पृ ९६; दे २।६ ) ।
कणिसवाया -- धान्य का अग्रभाग ( कु पृ १५३ ) ।
कणी -- फडकना, धड़कना ( पा ९८५ ) ।
कणुय -- १ त्वक् का अवयव-विशेष । २ गुठली का तुषरहित अवयव ( आचू पृ ३४० ) ।
कणेरु -- हथिनी ( अंवि पृ ६९ ) ।
कणोड्ढिआ -- गुंजा, घुङ्गची ( दे २।२१ ) ।
कणोवअ -- गरम किया हुआ जल, घृत, तैल आदि ( दे २।१६ ) ।
कण्ण -- १ गोल आकृति - 'जहानामए कण्णावली य गोलावली य वट्टावली य ( अनु ३।३९ ) । कण्णे - गोला, गोलाकृति (कन्नड़ ) । २ कोण ( निचू १ पृ ९९ ) ।
कण्णंबाल -- कान का आभूषण, कुण्डल आदि ( दे २।२३ ) ।
कण्णच्छुरी -- गृहगोधा, छिपकली ( दे २।१९ ) ।
कण्णत्तिय -- खेचर पंचेन्द्रिय प्राणी- विशेष ( जीवटी प ४१ ) ।
कण्णरोडय–-- कानों को बहरा करने वाला ( शब्द ) - 'सो तीसे कण्णरोडयं
असहंतो भणति' ( आवहाटी १ पृ ६० ) ।
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कणई -- लता ( दे २।५ ) ।
कणंगर -- पाषाणमय लंगर ( विपा १।६।१७ ) ।
कणक -- बाण - 'नाराय-कणक-कप्पणि-वासि-परसु ' ( प्र १।२८ ) ।
कणकाली -- अस्तर-विशेष ( ज्ञाटी प १६ ) ।
कणग -- १ ग्रह - विशेष - 'कणगा गिम्हे सिसिरे पंच वासासु सत्त उवहणंति' ( निचू ४ पृ २४५ ) । २ चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) ।
कणय -- १ बाण ( भ २।८९; दे २।५६ ) । २ बिल्व, बेल ( उशाटी प १४२ ) । ३ अवचय, फूलों का चुनना ( दे २।५६ ) ।
कणयंदी -- पाटला, पाढर वृक्ष ( दे २।५८ वृ ) ।
कणिआरिअ -- कटाक्ष, टेढी नजर से देखना, कानी आंख से देखना ( दे २।२४ ) ।
कणिक्क -- मत्स्य की एक जाति ( जीवटी प ३६ ) ।
कणिक्का -- समित, आटा - 'समिता-कणिक्का सा महुघएहि तुप्पेउं मद्दिउं च भगंदले छुभति ते किमिया तत्थ लग्गंति' (निचू १ पृ १०० ) ।
कणिस -- शस्य का तीक्ष्ण अग्रभाग ( उपाटी पृ ९६; दे २।६ ) ।
कणिसवाया -- धान्य का अग्रभाग ( कु पृ १५३ ) ।
कणी -- फडकना, धड़कना ( पा ९८५ ) ।
कणुय -- १ त्वक् का अवयव-विशेष । २ गुठली का तुषरहित अवयव ( आचू पृ ३४० ) ।
कणेरु -- हथिनी ( अंवि पृ ६९ ) ।
कणोड्ढिआ -- गुंजा, घुङ्गची ( दे २।२१ ) ।
कणोवअ -- गरम किया हुआ जल, घृत, तैल आदि ( दे २।१६ ) ।
कण्ण -- १ गोल आकृति - 'जहानामए कण्णावली य गोलावली य वट्टावली य ( अनु ३।३९ ) । कण्णे - गोला, गोलाकृति (कन्नड़ ) । २ कोण ( निचू १ पृ ९९ ) ।
कण्णंबाल -- कान का आभूषण, कुण्डल आदि ( दे २।२३ ) ।
कण्णच्छुरी -- गृहगोधा, छिपकली ( दे २।१९ ) ।
कण्णरोडय
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