2023-02-27 10:07:14 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

This page has not been fully proofread.

कणइल्ल -- शुक, तोता ( दे २।२१ ) ।
कणई -- लता ( दे २।५ ) ।
कणंगर- -- पाषाणमय लंगर ( विपा १।६।१७) ।
कणक- -
) ।
कणक --
बाण - 'नाराय- कणक-कप्पणि-वासि - -परसु ' ( प्र १।२८ ) ।
कणकाली -- अस्तर-विशेष ( ज्ञाटी प १६ ) ।

कणग -- १ ग्रह - विशेष - 'कणगा गिम्हे सिसिरे पंच वासासु सत्त उवहणंति' ( निचू ४ पृ २४५ ) । २ चतुरिन्द्रिय जंतु- विशेष ( जीवटी प ३२ ) ।
कणय -- १ बाण ( भ २।८९; दे २।५६ ) । २ बिल्व, बेल ( उशाटी प १४२ ) । ३ अवचय, फूलों का चुनना ( दे २।५६ ) ।
कणयंदी -- पाटला, पाढर वृक्ष ( दे २।५८ वृ ) ।
कणिआरिअ- -- कटाक्ष, टेढी नजर से देखना, कानी आंख से देखना
( दे २।२४) ।
) ।
कणिक्क -- मत्स्य की एक जाति ( जीवटी प ३६ ) ।
कणिक्का -- समित, आटा - 'समिता - -कणिक्का सा महुघएहि तुप्पेउं मद्दिउं
 
च भगंदले छुभति ते किमिया तत्थ लग्गंति' (निचू १ पृ १०० ) ।
कणिस -- शस्य का तीक्ष्ण अग्रभाग ( उपाटी पृ ९६; दे २।६ ) ।
कणिसवाया -- धान्य का अग्रभाग ( कु पृ १५३ ) ।
कणी -- फडकना, धड़कना ( पा ९८५ ) ।

कणुय -- १ त्वक् का अवयव - -विशेष । २ गुठली का तुषरहित अवयव
(
( आचू पृ ३४० ) ।

६३
 
कणेरु -- हथिनी ( अंवि पृ ६९ ) ।

कणोड़िड्ढि -- गुंजा, घुङ्गची ( दे २।२१) ।
 
-
) ।
कणोवअ -- गरम किया हुआ जल, घृत, तैल आदि ( दे २।१६ ) ।
कण्ण -- १ गोल आकृति - 'जहानामए कण्णावली य गोलावली य वट्टावली य
( अनु ३।३९ ) । कण्णे - गोला, गोलाकृति (कन्नड़ ) । २ कोण
( निचू १ पृ ९९ ) ।

कण्णंबाल -- कान का आभूषण, कुण्डल आदि ( दे २२३ ) ।
कण्णच्छुरी- -- गृहगोधा, छिपकली ( दे २।१९) । ) ।
 
 

कण्णत्तिय - खेचर पंचेन्द्रिय प्राणी- विशेष (जीवटी प ४१ ) ।
कण्णरोडय – कानों को बहरा करने वाला ( शब्द ) - 'सो तीसे कण्ण रोडयं
असहंतो भणति' (आवहाटी १ पृ ६० ) ।
 
-
 
Jain Education International
 
For Private & Personal Use Only
 
www.jainelibrary.org