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शब्दानुशासन से देशीशब्द चुने गए हैं। दूसरे परिशिष्ट में
धात्वादेश संकलित हैं ।
 
देशीधातुएं तथा
 
प्राकृत एवं अपभ्रंश के अध्ययन अध्यापन का क्षेत्र उत्तरोत्तर प्रसार
लाभ कर रहा है। कई विश्वविद्यालयों एवं स्वतन्त्र शोध संस्थानों में
शोधछात्र एवं अध्यापकगण इस क्षेत्र को समृद्ध बना रहे हैं। हमें पूर्ण विश्वास
है, प्राकृत एवं जैन शास्त्रों के अध्येताओं के लिए यह कोश लाभप्रद होगा
एवं और भी अधिक शोधपूर्ण ऐसे कोशों के निर्माण की दिशा में उन्हें प्रेरित
करेगा ।
 
लाडनूं ( राजस्थान )
६-३-८८
 
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नथमल टाटिया
निदेशक, अनेकांत शोधपीठ,
जैन विश्व भारती
 
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