देशीशब्दकोश /147
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ओत्थय -- १ पिहित, ढका हुआ - 'अत्थरयमिउमसूरगोत्थयं' ( दश्रु ८।४२ ) । २ अवसन्न, खिन्न ( दे १।१५१ ) ।
ओत्थर -- उत्साह ( दे १।१५० ) ।
ओत्थरिअ -- १ आक्रांत, जिस पर आक्रमण किया हो वह । २ आक्रमण करता हुआ ( दे १।१६९ ) ।
ओत्थल्लपत्थल्ला -- उथल-पुथल, दोनों पार्श्वों से परिवर्तन ( दे १।१२२ वृ ) ।
ओथुक्कित -- अत्यंत जुगुप्सित-धिद्धि त्ति ओथुविकत तालियस्सा' ( बृभा ४११५ ) ।
ओद्दंपिअ -- १ आक्रांत । २ नष्ट ( दे १।१७१ ) ।
ओपल्ल -- कुण्ठित, अपदीर्ण ( ज्ञाटी प १९९ ) ।
ओपविका -- क्षुद्र जंतु ( अंवि पृ २२९ ) ।
ओपित -- संस्कारित, परिकर्मित ( प्रटी प ७६ ) ।
ओपुष्फ -- निष्फल, व्यर्थ - 'जुण्णं ओपुप्फनिप्फलं' ( अंवि पृ ८१ ) ।
ओपेसेज्जिक -- धान्य पीस कर आजीविका चलाने वाला ( अंवि पृ १६० ) ।
ओप्प -- चमक - 'तूवरिया सुवण्णस्स ओप्पकरणमट्टिया' ( दअचू पृ ११० ) ।
ओप्पा -- शाण आदि पर मणि आदि रत्नों का घर्षण करना ( दे १।१४८ ) ।
ओप्पिअ -- शाण पर घिसा हुआ ( दे १।१४८ वृ ) ।
ओप्पील -- समूह ( पा १८ ) ।
ओप्फिट्ट -- अलग होना, पृथक् होना - 'ताहे सो ( गोसालो ) सामिस्स मूलओ ओफिट्टो' ( आवचू १ पृ २९९ ) ।
ओब्भालण -- १ सूर्प आदि से धान्य को साफ करना । २ अपूर्व ( दे १।१०३ वृ ) ।
ओभंजलिया -- चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) ।
ओभट्ट -- प्रार्थित, वांछित ( ओनि १४७ ) ।
ओमंथ -- नत, अधोमुख ( बृभा ६६५ ) ।
ओमंथिय -- नमाया हुआ, अधोमुख किया हुआ - 'ओमंथियवयणन यणकमला' ( ज्ञा १।१।३४ ) ।
ओमच्छग -- अधोमुख ( निचू २ पृ १२७ ) ।
ओमत्थ -- अधोमुख ( अनुद्वाचू पृ ५० ) ।
ओमत्थग -- अन्तिम - 'चरिमस्स आदिसमयातो आरब्भ ओमत्थगं' ( नंदीचू पृ २५ ) ।
ओत्थर -- उत्साह ( दे १।१५० ) ।
ओत्थरिअ -- १ आक्रांत, जिस पर आक्रमण किया हो वह । २ आक्रमण करता हुआ ( दे १।१६९ ) ।
ओत्थल्लपत्थल्ला -- उथल-पुथल, दोनों पार्श्वों से परिवर्तन ( दे १।१२२ वृ ) ।
ओथुक्कित -- अत्यंत जुगुप्सित-धिद्धि त्ति ओथुविकत तालियस्सा' ( बृभा ४११५ ) ।
ओद्दंपिअ -- १ आक्रांत । २ नष्ट ( दे १।१७१ ) ।
ओपल्ल -- कुण्ठित, अपदीर्ण ( ज्ञाटी प १९९ ) ।
ओपविका -- क्षुद्र जंतु ( अंवि पृ २२९ ) ।
ओपित -- संस्कारित, परिकर्मित ( प्रटी प ७६ ) ।
ओपुष्फ -- निष्फल, व्यर्थ - 'जुण्णं ओपुप्फनिप्फलं' ( अंवि पृ ८१ ) ।
ओपेसेज्जिक -- धान्य पीस कर आजीविका चलाने वाला ( अंवि पृ १६० ) ।
ओप्प -- चमक - 'तूवरिया सुवण्णस्स ओप्पकरणमट्टिया' ( दअचू पृ ११० ) ।
ओप्पा -- शाण आदि पर मणि आदि रत्नों का घर्षण करना ( दे १।१४८ ) ।
ओप्पिअ -- शाण पर घिसा हुआ ( दे १।१४८ वृ ) ।
ओप्पील -- समूह ( पा १८ ) ।
ओप्फिट्ट -- अलग होना, पृथक् होना - 'ताहे सो ( गोसालो ) सामिस्स मूलओ ओफिट्टो' ( आवचू १ पृ २९९ ) ।
ओब्भालण -- १ सूर्प आदि से धान्य को साफ करना । २ अपूर्व ( दे १।१०३ वृ ) ।
ओभंजलिया -- चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) ।
ओभट्ट -- प्रार्थित, वांछित ( ओनि १४७ ) ।
ओमंथ -- नत, अधोमुख ( बृभा ६६५ ) ।
ओमंथिय -- नमाया हुआ, अधोमुख किया हुआ - 'ओमंथियवयणन यणकमला' ( ज्ञा १।१।३४ ) ।
ओमच्छग -- अधोमुख ( निचू २ पृ १२७ ) ।
ओमत्थ -- अधोमुख ( अनुद्वाचू पृ ५० ) ।
ओमत्थग -- अन्तिम - 'चरिमस्स आदिसमयातो आरब्भ ओमत्थगं' ( नंदीचू पृ २५ ) ।