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ओअ -- वार्त्ता, कहानी ( दे १।१४९ ) ।
ओअंक -- गर्जारव, गर्जित ( दे १।१५४ ) ।
ओअग्गिअ -- १ अभिभूत । २ केश आदि को एकत्रित करना ( दे १।१७२ ) ।
ओअग्घिअ -- घात, सूंघा हुआ ( दे १।१६२ ) ।
ओअल्ल -- १ पर्यस्त, प्रक्षिप्त । २ प्रकंप, थरथराहट । ३ गौओं का बाडा । ४ लटकता हुआ ( दे १।१६५ ) । ५ खराब आचरण । ६ जिसकी आंखें निमीलित होती हों वह ( से १३।४३ ) ।
ओआअ -- १ गांव का स्वामी । २ अपहृत, जिसका अपहरण कर लिया गया हो वह । ३ आज्ञा । ४ हाथी आदि को बांधने के लिए बनाया हुआ गर्त्त ( दे १।१६६ ) ।
ओआअव -- अस्त-समय, अस्तमन-वेला ( दे १।१६२ ) ।
ओआल -- छोटा प्रवाह ( दे १।१५१ ) ।
ओआलित -- द्रवित किया, पिघाला- 'रण्णो चित्तं ओआलितं' ( आवहाटी १ पृ २३४ ) ।
ओआली -- १ खड्ग का एक दोष । २ पंक्ति ( दे १।१६४) ।
ओआवल -- बाल आतप, सुबह का सूर्य-ताप ( दे १।१६१) ।
ओइत्त -- परिधान, वस्त्र ( दे १।१५५ ) ।
ओइत्तण -- परिधान, वस्त्र ( दे १।१५५ ) ।
ओइल्ल -- आरूढ ( दे १।१५८ ) ।
ओउंबालग -- कोट्टपालक, आरक्षक ( आवचू १ पृ २८६ ) ।
ओएल्ल -- कुण्ठित - 'तत्थ वि य से धारा ओएल्ला' ( ज्ञा १।१४।७७ ) ।
ओंडल -- केश-रचना, धम्मिल्ल ( दे १।१५० ) ।
ओंडि -- मुट्ठी ( अवचू २ पृ १०१ ) ।
ओकड्ढक -- १ घर से धन आदि ले जाने वाले चोर । २ जो चोरों को बुला-कर चोरी कराते हैं । ३ चोरों के पृष्ठवाहक सहायक ( प्र ३।३ ) ।
ओकासक -- कर्ण का आभूषण जो नीचे लटकता रहता है ( अंवि पृ १६२ ) ।
ओक्कणी -- यूका, जूं ( दे १।१५९ ) ।
ओक्कतल्लिय -- चबाकर निकाला हुआ, वमन किया हुआ - 'अंबकोइलियाओ कुक्कुडएहिं ओक्कतल्लियाओ हरिएसेहिं णिज्जा इयातो' ( दअचू पृ २३ ) । ओक्करिसु ( कन्नड ) ।