2023-02-22 09:33:36 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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उब्बूर -- १ अधिक । २ संघात, समूह । ३ स्थपुट, विषमोन्नत प्रदेश ( दे १।१२६ ) ।
उब्भ -- १ खड़ा हुआ ( निचू १ पृ ५४ ) । २ ऊर्ध्व ( दे १।८६ वृ ) ।
उब्भंड -- फूहड, अस्त-व्यस्त वेशभूषा ( बृभा ६१५७ ) ।
उब्भंत -- ग्लान ( दे १।९५ ) ।
उब्भग्ग -- व्याप्त ( दे १।९५ ) – तिमिरोब्भग्गणिसाए' ( वृ ) ।
उब्भज्जी -- क्षीरपेया- 'कलमोतणो उ पयसा, उक्कोसो हाणि कोद्दवुब्भज्जी' ( ओभा ३०७ ) ।
उब्भट्ट -- मांगा हुआ - उब्भट्टपरिन्नायं अन्नं लद्धं पओयणे घेत्थी' ( पिनि २८१ ) ।
उब्भाअ -- शांत ( दे १।९६ ) ।
उब्भालण -- १ धान्य को छाज आदि से साफ-सुथरा करना ( दे १।१०३ ) । २ अपूर्व ( वृ ) ।
उब्भालिअ -- सूर्प आदि से साफ किया हुआ ( पा ५३८ ) ।
उब्भावण -- परिभव ( ओनि १४८ ) ।
उब्भावणा -- अपभ्राजना, तिरस्कार ( उशाटी प १६९ ) ।
उब्भाविअ -- मैथुन ( दे १।११७ वृ ) ।
उब्भासुअ -- शोभा-हीन ( दे १।११० ) ।
उब्भुआइअ -- उभरा हुआ ( दे १।१०५ वृ ) ।
उब्भुआण -- उफनता हुआ, अग्नि से तप्त दूध आदि का उछलना ( दे १।१०५ ) ।
उब्भुग्ग -- चल, अस्थिर ( दे १।१०२ ) ।
उब्भुत्तिअ -- उद्दीपित, प्रदीपित ( पा १६ ) ।
उब्भुभंड -- भांड-विशेष ( अंवि पृ १९३ ) ।
उब्भे -- तुम सब ( दे १।८६ वृ ) ।
उभज्झी -- क्षीरपेया ( ओटीप १९६ ) ।
उमत्थिय -- बांधकर - 'सव्वोवही ( एगट्ठा कज्जति भायणं उमत्थिए ) एगट्ठाणे पुढो कज्जति' ( निचू ३ पृ ३७४ ) ।
उमाण -- प्रवेश - 'उमाणं ति प्रवेशः' ( आटी प ३२६ ) ।
उमुत्तिल्लय -- १ बहु-मूत्र रोगवाला । २ मूत्राशय में सूजनवाला-जेण वा कट्ठाइणा संचालेति तं सविसं उमुत्तिल्लयं वा खयं वा कट्ठेण हवेज्जा' ( निचू २ पृ २८ ) ।