देशीशब्दकोश /117
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३ राजकुल में दातव्य द्रव्य, बेगार तथा सैनिक आदि की भोजन-व्यवस्था ( निचू ४ पृ २८० )।
उक्कोडभंग -- राजकुल में दातव्य की राजा द्वारा दी जाने वाली छूट, देखें-'खोडभंग' ( निचू ४ पृ २८० ) ।
उक्कोडा -- रिश्वत, लंचा ( विपा १।१।४९; दे १।९२ ) ।
उक्कोडी -- प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि ( दे १।९४ )।
उक्कोल -- घाम, गरमी ( दे १।८७ ) ।
उक्कोस -- अरुण रंग का पक्षी-विशेष ( अंवि पृ २२५ ) ।
उक्ख -- जैन साध्वियों के पहनने के वस्त्र-विशेष का एक अंश-'परिधाण-वत्थस्स अब्भिंतरचूलाए उवरिकण्णो नाभिहेट्ठा उक्खो भण्णइ' ( बृटी पृ ३३४ ) ।
उक्खंड -- १ संघात । २ विषमोन्नत प्रदेश ( दे १।१२६ ) ।
उक्खंडिय -- आक्रांत ( दे १।११२ ) ।
उक्खंद -- छावनी, घेरा डालना ( निचू २ पृ ४२७ ) ।
उक्खडमड्डा -- पुनः पुन: -'उक्खडमड्डा इति देशीपदमेतत् पुनः पुनः शब्दार्थश्च' ( व्यभा २ टी प ४७ ) ।
उक्खणण -- खांडना, निस्तुषीकरण ( दे १।११५ वृ ) ।
उक्खणिअ -- कंडित, निस्तुषीकृत ( दे १।११५ ) ।
उक्खल -- ओखली ( निचू ३ पृ ३७८ ) ।
उक्खलित -- उन्मूलित, चलित ( आचू पृ ३३९ ) ।
उक्खलिय -- उन्मूलित, उत्पाटित ( से ६।२९ ) ।
उक्खलिया -- १ स्थाली, पात्र-विशेष ( पिनि २५० ) २ उलूखल, ऊखल ( आवचू २ पृ ३१७ ) ।
उक्खली -- थाली, पिठर-'अलिंदक त्ति पत्ति त्ति उक्खली थालिक त्ति वा ' ( अंवि पृ ७२ ; दे १।८८ ) ।
उक्खलुंपिय -- खुजला कर-'णो गाहावईं अंगुलियाए उक्खलुंपिअ उक्खलुंपिअ जाएज्जा'- ( आचूला १।६२ )
उक्खल्लय -- अंगूठे को आच्छादित करने वाला जूता ( आचू पृ ३५२ ) ।
उक्खा -- पिठर, स्थाली-'दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए' ( आचूला १।२१ ) ।
उक्खिण्ण -- १ अवकीर्ण । २ गुप्त, आवृत । ३ पार्श्व में शिथिल, एक तरसे से ढीला ( दे १।१३० ) ।
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उक्कोडभंग -- राजकुल में दातव्य की राजा द्वारा दी जाने वाली छूट, देखें-'खोडभंग' ( निचू ४ पृ २८० ) ।
उक्कोडा -- रिश्वत, लंचा ( विपा १।१।४९; दे १।९२ ) ।
उक्कोडी -- प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि ( दे १।९४ )।
उक्कोल -- घाम, गरमी ( दे १।८७ ) ।
उक्कोस -- अरुण रंग का पक्षी-विशेष ( अंवि पृ २२५ ) ।
उक्ख -- जैन साध्वियों के पहनने के वस्त्र-विशेष का एक अंश-'परिधाण-वत्थस्स अब्भिंतरचूलाए उवरिकण्णो नाभिहेट्ठा उक्खो भण्णइ' ( बृटी पृ ३३४ ) ।
उक्खंड -- १ संघात । २ विषमोन्नत प्रदेश ( दे १।१२६ ) ।
उक्खंडिय -- आक्रांत ( दे १।११२ ) ।
उक्खंद -- छावनी, घेरा डालना ( निचू २ पृ ४२७ ) ।
उक्खडमड्डा -- पुनः पुन: -'उक्खडमड्डा इति देशीपदमेतत् पुनः पुनः शब्दार्थश्च' ( व्यभा २ टी प ४७ ) ।
उक्खणण -- खांडना, निस्तुषीकरण ( दे १।११५ वृ ) ।
उक्खणिअ -- कंडित, निस्तुषीकृत ( दे १।११५ ) ।
उक्खल -- ओखली ( निचू ३ पृ ३७८ ) ।
उक्खलित -- उन्मूलित, चलित ( आचू पृ ३३९ ) ।
उक्खलिय -- उन्मूलित, उत्पाटित ( से ६।२९ ) ।
उक्खलिया -- १ स्थाली, पात्र-विशेष ( पिनि २५० ) २ उलूखल, ऊखल ( आवचू २ पृ ३१७ ) ।
उक्खली -- थाली, पिठर-'अलिंदक त्ति पत्ति त्ति उक्खली थालिक त्ति वा ' ( अंवि पृ ७२ ; दे १।८८ ) ।
उक्खलुंपिय -- खुजला कर-'णो गाहावईं अंगुलियाए उक्खलुंपिअ उक्खलुंपिअ जाएज्जा'- ( आचूला १।६२ )
उक्खल्लय -- अंगूठे को आच्छादित करने वाला जूता ( आचू पृ ३५२ ) ।
उक्खा -- पिठर, स्थाली-'दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए' ( आचूला १।२१ ) ।
उक्खिण्ण -- १ अवकीर्ण । २ गुप्त, आवृत । ३ पार्श्व में शिथिल, एक तरसे से ढीला ( दे १।१३० ) ।
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