2023-02-21 09:05:02 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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उअचिय -- परिकर्मित ( औपटी पृ ३२ ) ।
उअट्टी -- नीवी, स्त्री का कटिवस्त्र या कटिवस्त्र के दी जाने वाली रस्सी की गांठ, नाडा ( नारा ) ( पा ४९१ ) ।
उअत्त -- निष्क्रांत, अतिक्रांत-'जाहे जलं वेलाए उअत्तं भवति' ( निचू ३ पृ १४० ) ।
उअपोत -- आकीर्ण, व्याप्त-'उअपोते देशीपदत्वाद् आकीर्णे' ( बूटी पृ ८८९ ) ।
उअरी -- शाकिनी, देवी-विशेष ( दे १।९८ ) - ( -'उंछयवाडे मज्जारिरूवयाओ भमन्ति उअरीओ' ( वृ ) ।
उअह -- देखो-'उअह त्ति पेच्छहत्थे' ( दे १।९८ ) ।
उअहारी -- दोहन करने वाली स्त्री ( दे १।१०८ ) ।
उआलि -- अवतंस, शिरोभूषण ( दे १।९० ) ।
उइंतण -- उत्तरीय वस्त्र, चादर ( दे १।१०३ ) ।
उंगुणी -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ ७० ) ।
उंचहिआ -- चक्रधारा ( दे १।१० ) ।
उंछ -- १ गर्ह्य, जुगुप्सनीय ( सूटी १ प १०८ ) । २ छींपा, कपड़ों को छापने वाला ( पा ७७० ) ।
उंछय -- वस्त्र छापने का काम करने वाला ( दे १।९८ ) ।
उंजण -- उत्सेचन ( दजिचू पृ १५६ ) ।
उंड -- १ मुख-'देसीवयणतो उंडं-मुहं' ( अनुद्वाचू पृ १३ ) । २ ऊंडा, गहरा ( औपटी पृ ५ ; दे १८५ )-'खणिआ उड्डेहिहिं कूवया य अइउंडा' ( वृ ) ।
उंडअ -- पांव में पिण्डरूप में लग जाए उतना गहरा कीचड़ ( ओभा ३३ )-'उंडका-पिण्डकास्तद्रूपो यो भवति, पादयोर्यः पिण्डरूपतया लगति स पिण्डक इत्यर्थः ( टी प २९ ) । उंडे-मिट्टी, गोबर ( कन्नड़ ) ।
उंडग -- १ स्थण्डिल ( द ४।२३ ) । २ पिण्ड, लोथड़ा- 'बालाई मंसउंडग मज्जाराई विराहेज्जा' ( ओभा २४६ ) ।
उंडणाही -- अंतरिक्ष में होने वाले क्षुद्र जंतु-'अंतलिक्खेसु संताणका उंडणाही घुक्कभरधा वा वि विण्णेया' ( अंवि पृ २२९ ) ।
उंडय -- मांसपिण्ड-'तेसिं जीवंतगाणं चेव हिययउंडए गिण्हावेइ' ( विपा १।५।१४ ) ।
उंडरुक्क -- मुंह से वृषभ की भांति शब्द करना-'देसीवयणतो उंडं-मुहं तेण