2023-02-19 02:46:37 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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आऊर -- १ अत्यधिक । २ उष्ण, गरम ( दे १।७६ ) ।
आऊसिय -- प्रविष्ट, संकुचित ( ज्ञा १।८।७२) ।
आए -- अतिथि, पाहुना ( व्य ९।१ ) ।
आओडण -- मजबूत करना, दृढ करना ( से ९।६ ) ।
आओडिम -- दबाकर या कूटकर बिठाना, जैसे किसी धातु आदि में मूर्ति या अक्षर उकेरना,-'आओडिमं जहा रूवओ बिंबेण बिंबेओ
ओवीलिज्जति' ( दअचू पृ ३९ ) ।
आओस -- सन्ध्या-'आओसे संगारो अमुइ वेलाए निग्गए ठाणं' ( ओभा ९१ ) ।
आंबिली -- इमली ( व्यभा ९ टी प ८ ) ।
आकर -- १ भाजन-विशेष-'आकरो नाम गृहस्थ सम्बन्धि सक्तुभृत-स्थाल्यादिभाजनम्' ( आवटि प ९९ ) । २ भीलों की बस्ती । ३ भीलों का कोट्ट, दुर्ग-'आकरो नाम भिल्लपल्ली भिल्लकोट्टं वा ' ( बृटी पृ ११०४ ) ।
आगत्ति -- कूपतुला-कूप से पानी खींचने का साधन ( दे १।६३ ) ।
आगर -- १ भीलों की बस्ती । २ भीलों का गांव या दुर्ग ( बृभा ४०३५ ) ।
आगल -- आगामी काल में होनेवाला-'आगलफलाणि वि मग्गइ त्ति' ( सूचू १ पृ ११८ ) ।
आगल्ल -- ग्लान-'से कम्मण तेण एस आगल्लो' ( बृभा ५३२१ ) ।
आघतण -- वध-स्थान ( आवहाटी २ पृ १९९ ) ।
आघयण -- वध-स्थान-'तत्थ णं महं एवं आघयणं पासंति' ( ज्ञा १।९।२५ ) ।
आघवण -- कथन ( अंत ३।८९ ) ।
आघविय -- गुरु के पास ग्रहण करना-'आघवियं ति प्राकृतशैल्या छांदसत्वाच्च गुरोः सकाशादागृहीतम्' । ( अनुद्वाहाटी पृ १५ ) ।
आचमणिका -- भाण्ड-विशेष ( अंवि पृ २५५ )
आडंबर -- पाणजातीय लोगों का यक्ष-विशेष ( व्यमा ७ टी प ५५ ) ।
आडा -- पक्षिणी-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) ।
आडाडा -- बलात्कार ( दे १।६४ ) ।
आडुआलि -- मिश्रण ( दे १।६९ ) ।
आडुआलित -- मिश्रित ( आवहाटी १ पृ २२८ )।
आडुताल -- मिश्रित करना, ठंडा करने के लिए हिलाना
( दअचू पृ २८; दे १।६९ ) ।