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निजी जीवन के विषय में पर्याप्त प्रामाणिक सूचनाएँ दी हैं। साथ ही, इस महा-
कवि के जीवन
न्य रचनाकारों का समय निर्णीत करने में भी दिशा मिली है। महाराजा हर्ष
ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में उत्तरी भारत का सम्राट् था और
उसीके समय में चीनी यात्री ह्वान साँग ६२९ ई० से ६४५ ई० तक भारत में
रहा था। हर्ष के दरबार के विषय में इस यात्री का लिखा विवरण और बाण
द्वारा वर्णित हर्षचरित का वृत्तान्त पूर्णतया समान तो नहीं हैं, परन्तु इनमें
अन्तर भी इतना सामान्य-सा है कि दोनों में वर्णित हर्षवर्द्धन को एक ही मान
लेने में कोई आपत्ति उपस्थित नहीं होती है । विद्वानों ने हर्ष का राज्यकाल
६०६ ई० से ६४८ ई० तक का मान्य किया है; अतः महाकवि बा
भी छठी शताब्दी के अन्तिम चरण से सातवीं का मध्य तक निश्चित किया
गया है ।
.
अनेक सूक्ति-संग्रहों में और अन्यान्य ग्रन्थकारों की रचनाओं में बाण, मयूर
और भक्तामरस्तोत्र के कर्ता मानतुङ्ग के समकालीन होने और हर्ष के दरबार में
उनके प्रतिस्पर्धी होने के स्पष्ट अथवा प्रस्फुट उल्लेख मिलते हैं, परन्तु कुछ मुद्दे
ऐसे हैं जो इन तीनों के समसामयिक होने में सन्देह उत्पन्न करते हैं। बाण और
मयूर के साथ-साथ हर्ष के दरबार में वर्तमान होने का सब से पुराना उल्लेख
नवसाहसाङ्क
ई० के लगभग माना जाता है । इसके बाद एक
सूक्तिमुक्तावली में दोनों का नामोल्लेख किया है-
१.
दर्पं कविभुजङ्गानां गता श्रवणगोचरम् ।
विषविद्येव मायूरी मायूरी वाङ् निकृन्तति ॥
इस पद्य के आधार पर यह निष्कर्ष निकाले जाते हैं कि बाण ने हर्षचरित
में अपने जिस समवयस्य मयूरक जाङ्गुलिक का नाम लिखा है, यह वही
मयूरक है, सूर्य-शतक का कर्ता नहीं । कुछ का मत है कि सूर्यशतककार मयूर
कवि जांगुलिक भी था। सूर्यशतक के दो श्लोकों को सर्व
आनन्दवर्द्धन ने उद्धृत किया है, यद्यपि उसने मयूर कवि का नामोल्लेख नहीं
[^१] सचित्रवर्णविच्छित्तिहारिणोरवनीपतिः ।
श्रीहर्षं इव सङ्घट्टं चक्रे बा
नवसाइ