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पूर्णेन्दुवदनेन प्रियंवदत्वेन हृदयानन्ददायि
इस सन्दर्भ ने संशोधकों को यह निष्कर्ष निकालने को उत्साहित कर दिया
कि महाकवि बाण ने पद्ममयी कादम्बरी कथा का भी प्रणयन किया होगा ।
श्रा
आनन्दजीवन नामक विद्वान् ने
तत्त्वविवेक टीका लिखी है, जिसमें उसने बाण-विरचित किसी वेदान्त-ग्रन्थ का
भी उल्लेख किया है । इससे ज्ञात होता है कि वह वेदान्तविज्ञ भी था ।
M
काव्यप्रकाश में मम्मट के इस उल्लेख से कि बाण को काव्यरचना के फल-
स्वरूप हर्ष से धन की प्राप्ति हुई थी, इस अनुमान का भी जन्म हुआ है कि
रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानन्द भी बाण की ही रचनाएं है ।
२
कैटेलागस् कैटेलागरम्[^२] में थियोडॉर
वा
बाणभट्ट के नाम से
-
कादम्बरी ओर हर्षचरित के बाद चण्डीशतक ही ऐसी रचना है जिसको
वा
बाण
की है, यद्यपि सन्देह ने कितनों
ऊपर बाण के नाम से जिन कृतियों का परिचय दिया गया है उनके नामों से ही
विदित हो जाता है कि बाणभट्ट साम्ब
जहाँ भी अवसर
करने में प्रमाद नहीं किया है। कादम्बरी में भी मङ्गलाचरण में त्रिगुणात्मक
ग्र
अज
जयन्ति बाणासुर
सुरासुराधीशशिखान्तशायिनो
दशास्यचूडामणिचऋचुम्बिन: ।
[^१
[^२
[^३
दोनों निहित है, अतः उसके स्त्री-पुंरूप में स्त्री
इसीलिए 'स्त्री अम्बा यस्य सः त्र्यम्बकः' ऐसी व्युत्पत्ति की गई है
में