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[ ३ ]
 
अत्र विप्रलम्भभरभग्नधैर्याया: कादम्बर्या विरहावस्थावर्णनं माधुर्यसौकुमार्यादिगुण योगेन
पूर्णेन्दुवदनेन प्रियंवदत्वेन हृदयानन्ददायिनी दयिततमामातनोति ।"
 
इस सन्दर्भ ने संशोधकों को यह निष्कर्ष निकालने को उत्साहित कर दिया।
कि महाकवि बाण ने पद्ममयी कादम्बरी कथा का भी प्रणयन किया होगा ।
 
श्रानन्दजीवन नामक विद्वान् ने श्रनुभवानन्द-कृत न्यायरत्नदीपावली पर
तत्त्वविवेक टीका लिखी है, जिसमें उसने बाण-विरचित किसी वेदान्त-ग्रन्थ का
भी उल्लेख किया है । इससे ज्ञात होता है कि वह वेदान्तविज्ञ भी था । '
 
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काव्यप्रकाश में मम्मट के इस उल्लेख से कि बाण को काव्यरचना के फल-
स्वरूप हर्ष से धन की प्राप्ति हुई थी, इस अनुमान का भी जन्म हुआ है कि
रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानन्द भी बाण की ही रचनाएं है ।
 

 
कैटेलागस् कैटेलागरम् में थियोडॉर ऑॉफेट ने 'सर्वचरित' नाटक भी
वाणभट्ट के नाम से हो लिखा है ।
 
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कादम्बरी ओर हर्षचरित के बाद चण्डीशतक ही ऐसी रचना है जिसको
वाण - विरचित होने की मान्यता देने में कवि विपश्चितों ने कम से कम प्रापत्ति
की है, यद्यपि सन्देह ने कितनों हो का पीछा इसको लेकर भी नहीं छोड़ा है ।
ऊपर बाण के नाम से जिन कृतियों का परिचय दिया गया है उनके नामों से ही
विदित हो जाता है कि बाणभट्ट साम्ब - शिव का अनन्य उपासक था । जहाँ-
जहाँ भी अवसर प्राया है उसने इष्टदेव का स्मरण अथवा उनकी चरित्र चर्चा
करने में प्रमाद नहीं किया है। कादम्बरी में भी मङ्गलाचरण में त्रिगुणात्मक
ग्रज को स्तुति के उपरान्त तुरन्त ही वह शिव का स्तवन करता है-
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जयन्ति बाणासुरमोलिलालिता:
 
सुरासुराधीशशिखान्तशायिनो
 
दशास्यचूडामणिचऋचुम्बिन: ।
 
भवच्छिदस्त्र्यम्बकपादपांसवः ॥
 
१. History of Classical Sanskrit Literature by M. Krishnamachariar,
p. 452
 
२०. भा० १, पृ० ३६८
 
३. त्र्यम्बक वास्तव में उमा- - माहेश्वर का नाम है । ईश्वर में जगत् का पितृत्व और मातृत्व
दोनों निहित है, अतः उसके स्त्री-पुंरूप में स्त्री पु की प्रम्बा है और पु स्त्री का पिता है,
इसीलिए 'स्त्री अम्बा यस्य सः त्र्यम्बकः' ऐसी व्युत्पत्ति की गई है
 
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