2023-03-06 11:55:11 by manu_css
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प्र
का पता लगा कर विद्वत्समुदाय को उपकृत किया है। इस प्रकाशन के लिए
उनको प्रेरणा ही गतिदायिनी हुई है इसलिए उनको धन्यवाद देना कर्तव्य
मानता हूँ ।
प्रतिष्ठान में कार्यकाल के समय मेरे सुहृद् और सहयोगी श्रीलक्ष्मीनारायण
जी गोस्वा
रहे हैं और निवृत्त्युपरान्त मे
उस साहाय्य कार्य का निर्वाह किया है। मैं इन दोनों ही सहयोगियों को स्नेहा-
भिषिक्त साधुवादों से सत्कृत करता हूँ ।
श्रीब्रजमोहनजी जावलिया, उदयपुर शा. का. के इन-चार्ज़ ने भी मुझे
समय-समय पर
क्लिष्ट पाठ और अनेक प्रतिलिपिकर्ताओं द्वारा तैयार की गई होने के कारण
अस्पष्ट
अधिक बार प्रूफ देने में कभी हिचक न करने वाले श्री हरिप्रसादजी पारीक
(
इस प्रकाशन से संस्कृत
प्रतीक्षित कृति सामने आ रही है, इतना सन्तोष तो विद्वानों को होना ही चाहिये-
अन्यथा शतक का चण्
है अतः प्रतिष्ठान की ओर से लक्षचण्डी (याग) तो हो हो गया है।.
अन्त में, मेरी योग्यता की स्वल्पता, प्रमाद
संस्करण में जो भी भूलें रह गई हों उनके लिए-
पुनश्च
जोधपुर
अक्षय नवमी,
सं० २०२४
}
प्रणम्य मान्यान् विनिवेदयामि
ग्रन्थं मुदा पश्यत सावधानाः
दृष्टे यदस्मिन् पर
भवेत्तथा सिद्धिरपि प्रकृष्टा ॥
EX
पुनश्च
विदितसकलवेद्
ग्रथितमपि महद्भिः किं पुनर्मादृशेन ।
इति विफलश्रमेऽस्मिन् वाग्व्ययेऽ
स्वमतिविमलता
जोधपुर
अक्षय नवमी,}
सं० २०२४
विनयपरायण
गोपालनारायण