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मुकुटताडितक नाटक का उल्लेख केवल भोजदेव के शृङ्गारप्रकाश और
त्रिविक्रमभट्ट-कृत नलचम्पू को दण्डपाल अथवा चण्डपाल एवं गुण विनयगणि
लिखित व्याख्याओं में ही मिलता है; मूल नाटक का अभी तक उपलब्ध न
होना ही पाया जाता है । उक्त व्याख्या में इस नाटक का जो पद्य उद्धृत
किया गया है वह इस प्रकार है।
पदाह मुकुटताडित के बाणः--
आशा: प्रोषितदिग्गजा इव गुहा : प्रध्वस्तसिंहा इव
द्रोण्यः कृत्तमहाद्रुमा इव भुवः प्रोत्खातशैला इव ।
बिभ्राणा: क्षयकालरिक्तसकलत्रैलोक्यदृष्टां दशां
जाता: क्षीणमहारथाः कुरुपतेर्देवस्य शून्यास्सभाः ॥
पाण्डव भीम द्वारा दुर्योधन का उरुभङ्ग ही इस नाटक का प्रसंग है ।
'पार्वतीपरिणय नाटक' का विषय कुमारसम्भव में वर्णित शिव-पार्वती-
विवाह है। आधुनिक संशोधकों का मत है कि यह कृति कादम्बरी के कर्ता
बाणभट्ट की न होकर अभिनव बाण अर्थात् वामनभट्ट बाण की है।[^१]
'शारदचन्द्रिका' की सूचना हमें शारदातनय-विरचित 'भावप्रकाशनम्'
में मिलती है । चन्द्रापीड़ की कथा के प्रसंग को लेकर वह कहता है--
कल्पितं बाणभट्टेन यथा शारदचन्द्रिका ।
दिव्येन मर्त्यस्य वधः काव्यस्यावश्यभावतः ॥[^२]
धनञ्जय ने दशरूपक में शारदचन्द्रिका को उत्सृष्टिकाङ्क का उदाहरण
माना है--
चन्द्रापीडस्य मरणं यत्प्रत्युज्जीवनान्तिकम् ।
कल्पितं भट्टबाणेन यथा शारदचन्द्रिका ॥
शिवशतक अथवा शिवस्तुति का नाम ही अर्थ-बोधक है, परन्तु इस कृति
के कुछ पद्य ही स्फुट सङ्ग्रहों में प्राप्त होते हैं ।
इनके अतिरिक्त क्षेमेन्द्र ने औचित्यविचारचर्चा में निम्न पद्य उद्धृत करते
हुए यह कहा है कि यह कादम्बरी की विरहावस्था का चित्रण है--
"हारो जलार्द्रवसनं नलिनीदलानि
प्रालेयशीकर मुचस्तु हिमांशुभासः ।
यस्येन्धनानि सरसानि च चन्दनानि
निर्वारणमेष्यति कथं स मनोभवाग्निः ॥"
[^१] कादम्बरी पर पी. पीटरसन की भूमिका; पृ० ७ ।
[^२] भावप्रकाश, २५२, गायकवाड ओरियण्टल सिरीज़।
त्रिविक्रमभट्ट-कृत नलचम्पू को दण्डपाल अथवा चण्डपाल एवं गुण विनयगणि
लिखित व्याख्याओं में ही मिलता है; मूल नाटक का अभी तक उपलब्ध न
होना ही पाया जाता है । उक्त व्याख्या में इस नाटक का जो पद्य उद्धृत
किया गया है वह इस प्रकार है।
पदाह मुकुटताडित के बाणः--
आशा: प्रोषितदिग्गजा इव गुहा : प्रध्वस्तसिंहा इव
द्रोण्यः कृत्तमहाद्रुमा इव भुवः प्रोत्खातशैला इव ।
बिभ्राणा: क्षयकालरिक्तसकलत्रैलोक्यदृष्टां दशां
जाता: क्षीणमहारथाः कुरुपतेर्देवस्य शून्यास्सभाः ॥
पाण्डव भीम द्वारा दुर्योधन का उरुभङ्ग ही इस नाटक का प्रसंग है ।
'पार्वतीपरिणय नाटक' का विषय कुमारसम्भव में वर्णित शिव-पार्वती-
विवाह है। आधुनिक संशोधकों का मत है कि यह कृति कादम्बरी के कर्ता
बाणभट्ट की न होकर अभिनव बाण अर्थात् वामनभट्ट बाण की है।[^१]
'शारदचन्द्रिका' की सूचना हमें शारदातनय-विरचित 'भावप्रकाशनम्'
में मिलती है । चन्द्रापीड़ की कथा के प्रसंग को लेकर वह कहता है--
कल्पितं बाणभट्टेन यथा शारदचन्द्रिका ।
दिव्येन मर्त्यस्य वधः काव्यस्यावश्यभावतः ॥[^२]
धनञ्जय ने दशरूपक में शारदचन्द्रिका को उत्सृष्टिकाङ्क का उदाहरण
माना है--
चन्द्रापीडस्य मरणं यत्प्रत्युज्जीवनान्तिकम् ।
कल्पितं भट्टबाणेन यथा शारदचन्द्रिका ॥
शिवशतक अथवा शिवस्तुति का नाम ही अर्थ-बोधक है, परन्तु इस कृति
के कुछ पद्य ही स्फुट सङ्ग्रहों में प्राप्त होते हैं ।
इनके अतिरिक्त क्षेमेन्द्र ने औचित्यविचारचर्चा में निम्न पद्य उद्धृत करते
हुए यह कहा है कि यह कादम्बरी की विरहावस्था का चित्रण है--
"हारो जलार्द्रवसनं नलिनीदलानि
प्रालेयशीकर मुचस्तु हिमांशुभासः ।
यस्येन्धनानि सरसानि च चन्दनानि
निर्वारणमेष्यति कथं स मनोभवाग्निः ॥"
[^१] कादम्बरी पर पी. पीटरसन की भूमिका; पृ० ७ ।
[^२] भावप्रकाश, २५२, गायकवाड ओरियण्टल सिरीज़।