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[ २ ]
 
मुकुटताडितक नाटक का उल्लेख केवल भोजदेव के शृङ्गारप्रकाश और

त्रिविक्रमभट्ट- कृत नलचम्पू को दण्डपाल अथवा चण्डपाल एवं गुण विनयग रिग
णि
लिखित व्याख्याओं में ही मिलता है; मूल नाटक का अभी तक उपलब्ध न

होना ही पाया जाता है । उक्त व्याख्या में इस नाटक का जो पद्य उद्धृत

किया गया है वह इस प्रकार है।

 
पदाह मुकुटताडित के बाणः-
प्रा
-
 
शा: प्रोषितदिग्गजा इव गुहा : प्रध्वस्तसिंहा इव

द्रोण्यः कृत्तमहाद्रुमा इव भुवः प्रोत्खातशैला इव ।

बिभ्राणा: क्षयकालरिक्तसकल त्रैलोक्यदृष्टां दशां

जाता: क्षीणमहारथाः कुरुपतेर्देवस्य शून्यास्सभाः ॥

 
पाण्डव भीम द्वारा दुर्योधन का उरुभङ्ग ही इस नाटक का प्रसंग है ।

'पार्वतोतीपरिणय नाटक' का विषय कुमारसम्भव में वर्णित शिव-पार्वती-

विवाह है। प्राधुनिक संशोधकों का मत है कि यह कृति कादम्बरी के कर्ता

बाणभट्ट की न होकर अभिनव वाबाण अर्थात् वामनभट्ट बाण की है । '
 
।[^१]
 
'शारदचन्द्रिका' की सूचना हमें शारदातनय-विरचित् 'भावप्रकाशनम्'

में मिलती है । चन्द्रापोपीड़ की कथा के प्रसंग को लेकर वह कहता है--

 
कल्पितं बाभट्टेन यथा शारदचन्द्रिका ।
 

दिव्येन मयंर्त्यस्य वधः काव्यस्यावश्यभावतः ॥
 
[^२]
 
धनञ्जय ने दशरूपक में शारदचन्द्रिका को उत्सृष्टिकाङ्क का उदाहरण

माना है-
-
 
चन्द्रापीडस्य मरणं यत्प्रत्युज्जीवनान्तिकम् ।

कल्पितं भट्टबारगेणेन यथा शारदचन्द्रिका ॥

 
शिवशतक अथवा शिवस्तुति का नाम ही अर्थ - -बोधक है, परन्तु इस कृति

के कुछ पद्य ही स्फुंफुट सङ्ग्रहों में प्राप्त होते हैं ।
 

 
इनके अतिरिक्त क्षेमेन्द्र ने नौचित्यविचारचर्चा में निम्न पद्य उद्धृत करते

हुए यह कहा है कि यह कादम्बरी की विरहावस्था का चित्रण है
 
--
 
"हारो जलाद्र र्द्रवसनं नलिनीदलानि

प्रालेयशीकर मुचस्तु
 
हिमांशुभासः ।
 

यस्येन्धनानि सरसानि च चन्दनानि

निर्वारणमेष्यति कथं स मनोभवाग्निः ॥
 

 
 
[^
.] कादम्बरी पर पी. पीटरसन की भूमिका; पृ०

[^
.] भावप्रकाश, २५२, गायकवाड ओरियण्टल सिरोज ।
 
रीज़।