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त्रिविक्रमभट्ट-
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लिखित व्याख्याओं में ही मिलता है; मूल नाटक का अभी तक उपलब्ध न
होना ही पाया जाता है । उक्त व्याख्या में इस नाटक का जो पद्य उद्धृत
किया गया है वह इस प्रकार है।
पदाह मुकुटताडित के बाणः-
प्रा
आशा: प्रोषितदिग्गजा इव गुहा : प्रध्वस्तसिंहा इव
द्रोण्यः कृत्तमहाद्
बिभ्राणा: क्षयकालरिक्तसकल
जाता: क्षीणमहारथाः कुरुपतेर्देवस्य शून्यास्सभाः ॥
पाण्डव भीम द्वारा दुर्योधन का उरुभङ्ग ही इस नाटक का प्रसंग है ।
'पार्व
विवाह है।
बाणभट्ट की न होकर अभिनव
'शारदचन्द्रिका' की सूचना हमें शारदातनय-विरचि
में मिलती है । चन्द्रा
कल्पितं बा
दिव्येन म
धनञ्जय ने दशरूपक में शारदचन्द्रिका को उत्सृष्टिकाङ्क का उदाहरण
माना है-
चन्द्रापीडस्य मरणं यत्प्रत्युज्जीवनान्तिकम् ।
कल्पितं भट्टबा
शिवशतक अथवा शिवस्तुति का नाम ही अर्थ
के कुछ पद्य ही स्
इनके अतिरिक्त क्षेमेन्द्र ने
हुए यह कहा है कि यह कादम्बरी की विरहावस्था का चित्रण है
"हारो जला
प्रालेयशीकर मुचस्तु
यस्येन्धनानि सरसानि च चन्दनानि
निर्वारणमेष्यति कथं स मनोभवाग्निः ॥
[^१
[^२