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उन्होंने कोई नाटक-प्रबन्ध भी लिखा होगा । वह सभी साहित्य अभी अनुपलब्ध
है । कामप्रबन्ध भी पहले बड़ा लिखा गया होगा, उसी में से थोड़े-थोड़े श्लोक
विविध गुटकों में उतार लिए गए होंगे ।
 
इनके अतिरिक्त डों० प्रेमलता शर्मा ने संगीतरत्नाकर की टीका संगीत-
क्रमदीपिका, एकलिङ्गाश्रय, ( नवीन ) गीतगोविन्द, कुम्भस्वामिमन्दार ( ? ) का
भी उल्लेख किया है, जिनका विवरण उनकी संगीतराज पर लिखी भूमिका में
द्रष्टव्य है ।
 
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वास्तुशास्त्रसम्बन्धी महाराणाविरचित प्रबन्ध का सूचन स्व. म. म.
गौरीशङ्कर हीराचन्द प्रोभा ने उदयपुर राज्य के इतिहास में किया है । यह
ग्रन्थ जय और अपराजित-मतानुसार कीर्तिस्तम्भों की रचना के विषय में है जो
शिलानों में खुदवा कर कीर्तिस्तम्भ के नीचे लगवाया गया था। इसकी प्रथम
शिला का प्रारम्भिक अंश उदयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है । इसकी निम्न-
पंक्तियों से परिचय स्पष्ट हो जाता है—
 
( १ ) स्वस्ति श्रीमत्सकलकविता कंदलीकदंबबन्धुः कोसुल्लासः स्फुरतु सु
(२) कवेश्चारुसंगीतदेव्याः । सांद्रानन्दं दिशतु विकमूर्तिलं -
 
(३) क्ष्मीवक्षःस्थकमलिनीकोशदेश द्विरेफः ॥१॥ श्री विश्वकर्माख्यमहार्यवीर्य-
(४) माचार्यमुत्प विधामुपास्य । स्तम्भस्य लक्ष्मातनुते नृपालः श्रीकुंभ-
कर्णो ज
 
( ५ ) यभाषितेन ॥ २ ॥ जयापराजितमुखैर्भणतिस्स त्रिघा यथा । इन्द्रस्य
ब्रह्मण-
स्वर्गीय श्रोझाजी ने लिखा है कि 'एकलिङ्गमाहात्म्य' के रागवर्णन अध्याय
में संकलित देवता-स्तुतियाँ महाराणा कुम्भकर्णप्रणीत है और ये विविध रागों
और तालों में गाई जाती है। वस्तुतः सम्पूर्ण एक लिङ्ग माहात्म्य (ग्रंथ सं. १४७७
उदयपुर शो. का.) ही कन्हव्यास द्वारा संकलित है प्रोर इसके बहुत से पद्य चित्र-
कूट एवं कुम्भलगढ़ की प्रशस्तियों में से ज्यों के त्यों लिए गए हैं। पुस्तक के
अन्तिम भाग में पञ्चायतनदेव स्तुतिपञ्चाशिका है, जिसमें से चण्डिकास्तुति
प्रस्तुत संस्करण के पृ. १५६-१६० पर उद्धृत है। इसको देखने पर पता चल
जायगा कि इनका प्रणेता 'प्रथदास' कन्हव्यास है जो सम्भवतः प्रथंकृते. महा
राणा व उनके इष्टदेवताओं की स्तुतियाँ और प्रशस्तियाँ लिखा करता था ।
 
यथा -