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प्रकाशित हो रहा है। श्री जावलिया परिश्रमी और उदीयमान शोध-विद्वान्
हैं । इस लेख में यद्यपि तथ्यों की अपेक्षा अनुमान का प्राश्रयं अधिक लिया गया
है तथापि निबन्ध पठनीय प्रोर सूचनागभित है। मेरे एक और जयपुर निवासी
मित्र श्री रामस्वरूप सोमाणी ने बड़े परिश्रम, लगन और अध्ययन के साथ
महाराणा कुम्भकर्ण पर शोधपूर्ण पुस्तक लिखी है जो निकलने ही वाली है।
 
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महाराणा कुम्भकर्ण को प्रकाशित कृतियों एवं उनके विषय में अध्ययनात्मक
विवरणों की यज्ज्ञात जानकारी के आधार पर ऊपर सूचना अंकित की गई है ।
ध्रुव, उनकी अप्रकाशित एवं लब्धानुपलव्ध उन रचनाओं का भी थोड़ा-सा विव-
रण यहां दे देना उपयुक्त होगा जिनकी प्रायः चर्चाएं होती रहती है। गीत-
गोविन्द की रसिकप्रिया टीका, प्रस्तुत चण्डीशतकवृत्ति तथा संगीतराज के पाठ्य,
गीत एवं नृत्यरत्नकोशों के अतिरिक्त वाद्य और रसरत्नकोश अभी अप्रकाशित
है । गीतगोविन्द को टीका का जो संस्करण निर्णयसागर प्रेस, बंबई से निकला
है उसका और राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के उदयपुरस्थ शाखा कार्यालय
में सुरक्षित एक गुटके (सं. १७४२-४८ ) में प्राप्त उक्त टीका का मीलान करने
पर निम्न दलोक और मिले है :-
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नवम सर्ग के प्रारम्भ में -
 
"नट्टरागेण, तृतीयसालेन ॥
 
पदरचना जयदेवोदिता कमलावल्लभगानोचिताः ।
कुम्भनृपेरण परं योजिता धातुवरेण भरगत रसरताः ॥ १॥"
 
दशम सर्ग के श्रारम्भ में --
 
' मध्यमादिरागेण गोयते वरणं-यतितले ॥
 
यदि कौतुकिनां गानें संगीते चातुरी यदा रसिका: ।
कुम्भनृपतिकृतधातु शृणुत तदा गीतगोविन्दम् ॥१॥"
 
एकादश सर्ग के आरम्भ में-
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"नट्टरागेण प्रांदितालेन ॥
 
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ललिताऽपि हि पदरचना न धातुयोगादृते विभाति शुभा
इति कुम्भकर्णनृपतिर्गयति तां गीतगोविन्दे ॥१॥"
शोधपत्रिका (उदयपुर), वर्ष १७ ; अंक १-२ के पृ० ३१ पर श्री अगर
चन्दजी नाहटा ने महाराणा कुम्भा के दो अप्रसिद्ध ग्रन्थों की प्रशस्तियां प्रका-
शित की है। इस लेख में उन्होंने सूचना दी है कि अहमदाबाद में मुनिराज
पुण्यविजयजी के गुटकों में उन्हें 'गीतगोविन्द' एवं 'सूडप्रबन्ध' की एक प्राचीन
 
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