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लिलिखे । इति बाणभट्ट विरचितच ण्डिकाशतकावचूरिंगर्णि, टीकोपकृता ॥ श्री

सुखं भवतु ॥ श्री "
 
"
 
इससे ज्ञात होता है कि यह अवचूर्णि किसी १०१ श्लोकों की वृत्ति के

आधार पर रची गई है । प्रतिरिक्त श्लोक इस प्रकार हैं :-

 
अन्य कतिपय श्लोकों के पाठान्तर इस प्रकार है
-
श्लो० २० पंक्ति २
 

 
37
 

 
38
 

 
नो चक्रे तीक्ष्णधारे निपतति न कृतः सन्नतो येन मूर्द्धा,

र्प्पाद्विश्वक्रेऽपि विष्णोर्नवशर निकरे पाशंर्तु
 
र्न पाशे ।
 

यस्यास्तस्यापि दूरं कमल मृदुपदान्यकुन्यक्कृता (?(ॊ) दैत्यभतु :
र्तुः
शर्वाणी पातु सा वः सुररिपुमथने वन्द्यमाना सुरोधःधैः ॥ १०२॥

 
गन्धर्व्वैर्गीतिगर्भं सचकितमसुरैर्ऋग्भिराद्यैर्मुनीन्द्रै-

र्लोकैः सत्कारपूर्वं
विविधगुणगणंदणैश्चाटुकारैवँर्वचोभिः ।
 
लॉक: सत्कारपूर्व
 
3
 

सानन्दं स्तूयमाना शिरसि हिमवता चुम्बिता मेनया
 
व-
स्स्थाण्वङ्गं भूय इच्छु: सुखयतु भ[व]तः सा भवानी हतारिः ॥ १०३॥
 
99
 
"
 

 
अन्य कतिपय श्लोकों के पाठान्तर इस प्रकार है--
 
श्लोक

 
० पड़्क्ति
 
२३
 
31
 
, १ माऽसून् विहासी
 
,,.२
 
शूलेनेशो यशो भासयति
 

" " ३
प्रांतताराक्तनात्पाटलिम्ना
 

" २१ " १ •••माऽसून् विहासी
" २१ " २
रर्थेश स्थाणुकंकण्ठे जहि गदमगदस्योपयोगोऽयमेव ।

" २३ " ३ •••
भानुमित्यात्मद
 
"३
 
र्प्पं
"
२४
 
{"
 
२६
 
,, २
 
२६
 
" दैत्या व्यापाद्यतां द्रागज इव महिषो हन्यते सन्महेऽद्ये ।

" २६ " २
पलान्तेवोत्पत्य पत्युस्तलभुजयुगलस्यालमालम्नाय ।

" २९ " १
गाहस्व व्योममार्गं हतमहिषभयंन घ्न यैर्नव्रध्न
••
" ३८ " ४ •••
यंति हतरिपुर्ह्रेर्पिता करिणर्णिकायाः ।

" ३९ " ४
पातालं पंकपानोन्मुख इव..
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३८ ४
 

 
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महाराणा कुम्भकर्ण का बहुमुखी व्यक्तित्व ऐसा है कि जिस पर मध्यकालीन

भारत और विशेषत: राजस्थान गर्व कर सकता है । कला और शास्त्राध्ययन के

विकास में उनका योग चिरस्मरणीय रहेगा। यह विचारणीय है कि भारत के

इतिहासज्ञों और इतिहासकारों ने इन महाराणा के पराक्रम, राजनीतिक सूझ-
वू श्री

बूझ औ
र स्वराज्य -रक्षा एवं राज्य -विस्तार के श्लाघ्य प्रयत्नों की प्रोर प्रओर अपेक्षित

ध्यान नहीं दिया। कला, साहित्य और संस्कृति के पोषण -सम्बन्धी सत्प्रयत्नों

पर ध्यान न देना तो उत्तरकालवर्ती तथाकथित इतिहासकारों का रिवाज हो

बन गया था। कुछ मुसलमान इतिहासलेखकों का तो वतीरा ही यह रहा कि

विधर्मी के पर्वताकार पराक्रम को भी राई बराबर बताना और स्वधर्मी को
 
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