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39
५
""
वि
" " पार्वती के प्रति " १४, ३०, ८८
जया की उक्ति
कुमार की उक्ति
" " देव-पत्नियों के प्रति " ३३
" " देवताओं के प्रति " १४, ३८, ६९, ८६
" " शिव के प्रति " ३२
विजया की उक्ति
कुमार की उक्ति गणेश के प्रति " ६७
देवताओं की उक्ति देवी के प्रति " ७०
दैत्य (महिष) की उक्ति
""
1
[
विजया
" " देवी के प्रति
पार्वती
८३, ८५, १००
" " कुमार के प्रति
पार्वती के प्रति
देवपत्नियों के प्रति
देवताओं के प्रति
" " शिव के प्रति
देवताओं के प्रति
गणेश के प्रति
देवी के प्रति
देवों के प्रति
देवी के प्रति
पद्याङ्क
कुमार के प्रति
शिव के प्रति
" " प्रमथगण के प्रति
" " स्वोक्ति
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38
11
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32
"}
१
१४, ३०,
८९
३३
१४, ३८, ६६, ८६
३२
१ .
६७
७०
८८
२३, ३४, ५७, ६५, ८०
२७, ७६, ७७, ८१, ८२
८३,८५,
१००
२८
६२, ६१
३५
६२
}}
शेष पद्यों में कवि ने पार्वती, उमा, भद्रकाली, कात्यायनी,
आर्या, शर्वा
देवी अथवा उसके वाम चरण को, बाण या कुमार द्वारा पाठकों का मङ्गल
करने, उनको पवित्र करने तथा उनके दुरितों का नाश करने की कल्याण-
कामना की है ।
'
शतक के सभी पद्य स्रग्धरा वृत्त में निर्मित
४
स्पष्ट कारण समझ में नहीं
कोई आयोजना सङ्कल्पित नहीं थी; समय-समय पर जब जैसा पद्य बना वही
शतक में संकलित कर लिया गया । यह भी सम्भव है कि पहले कवि ने सप्त-
तिका
गए तो उन्हें मिला कर मयूर की स्पर्धा में शतक
1.
[^१] A Catalogue of South Indian Sanskrit Manuscripts (especially those
of the Whish collection ) in the Royal Asiatic Society, London,
Compiled by M. Winternitz, 1902.