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वही लाल समुद्र प्रापआप की रक्षा करें ।'
 
[^१]
 
देवी ने पति के ( तीनों) नयनों के मुकाबले में अपने तीन प्रकार के रूप

( वर्ण ) प्रकट किए । पहले तो समस्त संसार को मानो प्रलय के समय आकुल

हो, ऐसा देख कर ( शिव के धूमाकुल आग्नेय नेत्र के समान ) काली -रूप धारण

किया; फिर, दिति के पुत्र ( दैत्य महिष) को खण्डित कर देने वाली देवी पैर

में सींग लग जाने से मत्सर (क्रोध) के कारण ( सूर्य के समान ) रक्तवर्णा हो

गई; तदनन्तर, जब चरणाघात से चकनाचूर होकर मृत महिष गिर गया तो

अपने पूर्व ( सहज ) स्वभाव के अनुसार वह पुन: ( चंद्रमा के समान ) गौरी हो

गई । इस प्रकार जिस गौरी (पार्वती) ने महिष-वध के प्रसंग में अपने पति

(शिव) के अग्नि, सूर्य और चंद्र-संज्ञक नेत्रों के समान तीन वर्ण प्रकट किए वह

आपकी रक्षा करे
 
[ ^]
 

 
देवी का चरण स्वभावतः लाल है, कोप के कारण वह औौर भी लाल हो

गया जिससे लाक्षारस ( यावक) की शोभा अधिक दिखाई पड़ने लगी; महिष

के शृङ्ग के ऊँचे कोण से टकरा कर मणिमय नूपुर नक उठा, वही मानों

उसकी प्रान्तरिक हुंकार है, ऐसा वह चरण जब महिष पर रखा गया तो दैत्यों

ने उसको कोप के कारण लाल-लाल लाख के रस के समान वर्णधारी और

हुंकार करते हुए दूसरे यमराज के समान उस ( महिष) पर बैठा हुआ देखा;

वही देवी का अरुण चरण आपके शत्रुओं का नाश करे । 3
 
[^३]
 
कार्य-साधन के लिए चार ही उपाय बताए गए है— हैं--साम, दाम, भेद और
 

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] नीते निर्व्याजदीर्घामघवति मघवद्वज्लज्जानिदाने
 

निद्रां द्रागेव देवद्विपिषि मुषितभियः संस्मरन्त्याः स्वभावम् ।

देव्या दृग्भ्न्यस्तिसृभ्स्त्रय इव गलिंलिता राशयः शोरिगणितस्य

त्रायन्तां त्वां त्रिशूलक्षतकुहरभुवो लोहिताम्भः समुद्राः ॥४०॥

 
[^२]
काली कल्पान्तकाल । लाकुलमिय सकलं लोकमालोक्य पूर्
वं
पश्चात् श्लिष्टे विपाणे विदितदितिसुता लोहिनी मत्सरेण ।

पादोत्पिष्टे परासीसौ निपतति महिपेषे प्रायस्वभावेन गौरी
गो

गौ
री वः पातु पत्युः प्रतिनयनमिवाविष्कृतान्योन्यरूपा ॥४१॥

 
[^३]
कोपेनंनैवारुणत्वं ददधिकतराऽऽलक्ष्यलाक्षारसश्रोः
दिलप्
रीः
श्लिष्
यच्छृङ्गाग्र कोणवरिणतम रिणक्वणितमणितुला कोटिहुड़्कारगर्भः ।

प्रत्यासन्नात्ममृत्युः प्रतिभमसुरैरीक्षितो हन्त्वरोरीन्वः

पादो देव्याः कृतान्तोऽपर इव महिस्योपरिष्टान्निविष्टः ॥४४॥