2023-03-13 19:31:46 by manu_css
This page has been fully proofread once and needs a second look.
त्रिविक्रम
लिखित व्याख्याओं में ही मिलता है; मूल नाटक का अभी तक उपलब्ध न
होना ही पाया जाता है । उक्त व्याख्या में इस नाटक का जो पद्य उद्धृत
किया गया है वह इस प्रकार है
य
पदाह मुकुटताडित के बा
आशा:
-
1
प्राशाः
द्रोण्यः कृत्तमहाद्
बिभ्राणा: क्षयकालरिक्तसकलत्
जाता: क्षीणमहारथाः कुरुपतेर्देवस्य शून्यास्सभाः ॥
पाण्डव भीम द्वारा दुर्योधन का उरुभङ्ग ही इस नाटक का प्रसंग है ।
'पार्व
विवाह है। आधुनिक संशोधकों का मत है कि यह कृति कादम्बरी के कर्ता
बाणभट्ट की न होकर अभिनव
'शारदचन्द्रिका' की सूचना हमें शारदातनय-विरचित 'भावप्रकाशनम्'
में मिलती है । चन्द्रापीड़ की कथा के प्रसंग को लेकर वह कहता है-
कल्पितं बाणभट्
दिव्येन म
धनञ्जय ने दशरूपक में शारदचन्द्रिका को उत्सृष्टिकाङ्क का उदाहरण
माना है-
चन्द्रापीडस्य मरणं यत्प्रत्युज्जीवनान्तिकम् ।
कल्पितं भट्टबा
शिवशतक अथवा शिवस्तुति का नाम ही अर्थ
के कुछ पद्य ही स्फुट सङ्ग्रहों में प्राप्त होते हैं ।
इनके अतिरिक्त क्षेमेन्द्र ने
हुए यह कहा है कि यह कादम्बरी की विरहावस्था का चित्रण है
"हारो जला
प्रालेयशीकर मुचस्तु हिमांशुभासः ।
यस्येन्धनानि सरसानि च चन्दनानि
निर्वारणमेष्यति कथं स मनोभवाग्निः ॥
----------------
[^१
[^२
T
-
CC-0. RORI. Digitized by Sri Muthulakshmi Research Academy