2023-03-13 13:34:42 by ambuda-bot
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[ ३e ]
और ताल के अनुसार निबद्ध किया गया है और पद्य में ही उस छन्द का
नाम भी सूचित कर दिया है, यथा-
श्रादिताले -
-
जय जय कुम्भनृपाद्य ( घि) निवारण
जय जय कुंकुमकलितनवारण
जय जय वदनविराजितवारण
छन्दोऽडिल्लाजितहरिवारण ॥
इसी प्रकार आगे के पद्यों की भी श्रादिताल, यतिताल, मंठताल, द्रुतमंठ-
ताल, प्रतिमंठताल, अद्भुतताल, एकतालीताल आदि में मदलेखा, शशिवदना,
स्रग्धरा, मौक्तिकदाम, वसन्ततिलका, शालिनी, भुजङ्गप्रयात, पञ्चचामर प्रादि
छन्दों में बन्दिश की गई है ।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि ये सब तालें शायद मिट्टी के घड़े पर दी
जाती थीं जैसा कि राजवर्णन के निम्न पद्य से सूचित होता है -
मृत्कलशवाद्य [रत्न ] श्रीनारायणपरायणः
सनुते श्रीमतेनैव सौख्यपीयूषवृद्धये ॥२०७॥
सम्भव है, यह पद्य और इससे पूर्व के तीन पद्य उक्त दोनों शार्दूलविक्रो-
डित पद्यों से विरहित होकर पूर्व प्रकरण में लिखे गए हों, अथवा ये वाद्यरत्नकोश
के प्रारम्भिक पद्य हों। वाद्यरत्नकोश की प्रति सम्मुख नहीं है, प्रतः कुछ निश्चित
नहीं कहा जा सकता कि वाद्यप्रबन्ध-नामक कोई संगीतराज से भिन्न रचना है,
जिसमें से कन्ह व्यास ने अन्य रचनाओं के पद्यों की तरह इन पद्यों को भी उद्धृत
किया है, या ये पद्य पञ्चायतन स्तुति की प्रस्तावना में ही लिखे गये हैं या वाद्य-
रत्नकोश के प्रास्ताविक पद्य हैं ।
ऊपर महाराणा कुम्भकर्णकृत जिन प्रकट और सन्दर्भित ग्रंथों के विषय में
लिखा गया है उनके प्रतिरिक्त प्रस्तुत चण्डीशतकवृत्ति में दो भौर कृतियों का
संकेत मिलता है। यों तो यह वृत्ति एक पाण्डित्यपूर्ण व्याख्या है और इसमें
अवसरानुकूल अनेक पूर्वाचार्यों के शास्त्रीय सन्दर्भ भङ्कित किए गए हैं परन्तु
स्पष्ट नामोल्लेख केवल दो ही ग्रन्थों का किया गया है, जैसे, पृ० ३७ की अंतिम
पंक्ति में -
-
"तथा च मदीये दर्शनसं प्रहे-
'दृष्टार्थानुपपत्या च कस्याप्यर्थस्य कल्पना ।
क्रियते यद्बलेनासावर्थापत्तिरुदाहृता ॥' इति"
CC-0. RORI. Digitized by Sri Muthulakshmi Research Academy
[ ३e ]
और ताल के अनुसार निबद्ध किया गया है और पद्य में ही उस छन्द का
नाम भी सूचित कर दिया है, यथा-
श्रादिताले -
-
जय जय कुम्भनृपाद्य ( घि) निवारण
जय जय कुंकुमकलितनवारण
जय जय वदनविराजितवारण
छन्दोऽडिल्लाजितहरिवारण ॥
इसी प्रकार आगे के पद्यों की भी श्रादिताल, यतिताल, मंठताल, द्रुतमंठ-
ताल, प्रतिमंठताल, अद्भुतताल, एकतालीताल आदि में मदलेखा, शशिवदना,
स्रग्धरा, मौक्तिकदाम, वसन्ततिलका, शालिनी, भुजङ्गप्रयात, पञ्चचामर प्रादि
छन्दों में बन्दिश की गई है ।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि ये सब तालें शायद मिट्टी के घड़े पर दी
जाती थीं जैसा कि राजवर्णन के निम्न पद्य से सूचित होता है -
मृत्कलशवाद्य [रत्न ] श्रीनारायणपरायणः
सनुते श्रीमतेनैव सौख्यपीयूषवृद्धये ॥२०७॥
सम्भव है, यह पद्य और इससे पूर्व के तीन पद्य उक्त दोनों शार्दूलविक्रो-
डित पद्यों से विरहित होकर पूर्व प्रकरण में लिखे गए हों, अथवा ये वाद्यरत्नकोश
के प्रारम्भिक पद्य हों। वाद्यरत्नकोश की प्रति सम्मुख नहीं है, प्रतः कुछ निश्चित
नहीं कहा जा सकता कि वाद्यप्रबन्ध-नामक कोई संगीतराज से भिन्न रचना है,
जिसमें से कन्ह व्यास ने अन्य रचनाओं के पद्यों की तरह इन पद्यों को भी उद्धृत
किया है, या ये पद्य पञ्चायतन स्तुति की प्रस्तावना में ही लिखे गये हैं या वाद्य-
रत्नकोश के प्रास्ताविक पद्य हैं ।
ऊपर महाराणा कुम्भकर्णकृत जिन प्रकट और सन्दर्भित ग्रंथों के विषय में
लिखा गया है उनके प्रतिरिक्त प्रस्तुत चण्डीशतकवृत्ति में दो भौर कृतियों का
संकेत मिलता है। यों तो यह वृत्ति एक पाण्डित्यपूर्ण व्याख्या है और इसमें
अवसरानुकूल अनेक पूर्वाचार्यों के शास्त्रीय सन्दर्भ भङ्कित किए गए हैं परन्तु
स्पष्ट नामोल्लेख केवल दो ही ग्रन्थों का किया गया है, जैसे, पृ० ३७ की अंतिम
पंक्ति में -
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"तथा च मदीये दर्शनसं प्रहे-
'दृष्टार्थानुपपत्या च कस्याप्यर्थस्य कल्पना ।
क्रियते यद्बलेनासावर्थापत्तिरुदाहृता ॥' इति"
CC-0. RORI. Digitized by Sri Muthulakshmi Research Academy