This page has not been fully proofread.

T
 
[
 
३७ ]
 
उन्होंने कोई नाटक-प्रबन्ध भी लिखा होगा । वह सभी साहित्य अभी अनुपलब्ध
है । कामप्रवन्ध भी पहले बड़ा लिखा गया होगा, उसी में से थोड़े-थोड़े श्लोक
विविध गुटकों में उतार लिए गए होंगे ।
 
इनके अतिरिक्त डों० प्रेमलता शर्मा ने संगीतरत्नाकर की टीका संगीत-
क्रमदीपिका, एकलिङ्गाश्रय, (नवीन) गीतगोविन्द कुम्भस्वामिमन्दार ( ? ) का
भी उल्लेख किया है, जिनका विवरण उनकी संगीतराज पर लिखी भूमिका में
द्रष्टव्य है ।
 
वास्तुशास्त्रसम्बन्धी महाराणाविरचित प्रबन्ध का सूचन स्व. म. म.
गौरीशङ्कर हीराचन्द श्रोभा ने उदयपुर राज्य के इतिहास में किया है । यह
ग्रन्थ जय और अपराजित-मतानुसार कीर्तिस्तम्भों की रचना के विषय में है जो
शिलाओं में खुदवा कर कीर्तिस्तम्भ के नीचे लगवाया गया था। इसकी प्रथम
शिला का प्रारम्भिक अंश उदयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है। इसकी निम्न-
पंक्तियों से परिचय स्पष्ट हो जाता है -
 
-
 
(१) स्वस्ति श्रीमत्सकल कविता कंदली कदंब बन्धुः कोसुल्लास: स्फुरतु सु
(२) कवेश्चारुसंगीतदेव्याः । सांद्रानन्दं दिशतु विकमूर्तिलं -
 
-
 
(३) क्ष्मीवक्षःस्थकमलिनीकोश देशद्विरेफः ॥१॥ श्री विश्वकर्माख्यमहार्यवीर्य -
(४) माचार्यमुत्पविधामुपास्य । स्तम्भस्य लक्ष्मातनुते नृपालः श्रीकुंभ-
कर्णो ज
 
(५) यभाषितेन ॥२॥ जयापराजित मुखैर्भणतिस्स त्रिधा यथा । इन्द्रस्य
 
ब्रह्मण-
स्वर्गीय श्रोभाजी ने लिखा है कि 'एकलिङ्गमाहात्म्य' के राग वर्णन अध्याय
में संकलित देवता-स्तुतियाँ महाराणा कुम्भकर्णप्रणीत है और ये विविध रागों
और तालों में गाई जाती हैं। वस्तुतः सम्पूर्ण एकलिङ्ग माहात्म्य ( ग्रंथ सं. १४७७
उदयपुर शा.का.) ही कन्हव्यास द्वारा संकलित है और इसके बहुत से पद्य चित्र-
कूट एवं कुम्भलगढ़ की प्रशस्तियों में से ज्यों के त्यों लिए गए हैं। पुस्तक के
अन्तिम भाग में पञ्चायतनदेव स्तुतिपञ्चाशिका है, जिसमें से चण्डिकास्तुति
प्रस्तुत संस्करण के पृ. १५९-१६० पर उद्धृत है । इसको देखने पर पता चल
जायगा कि इनका प्रणेता 'अर्थदास' कन्हव्यास है जो सम्भवतः प्रर्थकृते महा-
राणा व उनके इष्टदेवताओं की स्तुतियाँ घोर प्रशस्तियाँ लिखा करता था ।
 
यथा-
-
 
CC-0. RORI. Digitized by Sri Muthulakshmi Research Academy