This page has not been fully proofread.

T
 
[ २७ ]
 
मार्च १९६३ ई० में 'साइल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर से
'राजस्थान भारती' का 'महाराणा कुम्भा विशेषांक' प्रकाशित हुआ; उसमें श्री
भँवरलाल नाहटा ने अपने लेख 'महाराणा कुम्भा रचित चण्डीशतक-वृत्ति' में
यह सूचना दी कि "अभी तक चण्डीशतकवृत्ति की कोई हस्तलिखित प्रति
प्राप्त नहीं हुई थी ।...कलकत्ते के 'जैन भवन ग्रंथालय' में उसकी एक प्रति
प्राप्त हो गई है । पर साथ ही यह लिखते हुए भी बड़ा दुख होता है कि बंगाल
की सरदोलो ग्राबहवा हस्तलिखित प्रतियों के लिए बड़ी घातक होती है। इस
प्रति को भी उसने इतनी क्षति पहुँचाई कि सारे पन्ने चिपक गए और आदि
अन्त के पत्र भो इतने खराब हो गए हैं कि बहुत प्रयत्न करने पर भी प्रारम्भिक
श्लोक र अंत की प्रशस्ति की भी पूरी नकल नहीं की जा सको । उसका
जितना अंश या जितने अक्षर पढ़े जा सके उसकी नकल आगे दी जा रही है ।
सम्भव है, खोज करने पर अन्य किसी हस्तलिखित ग्रन्थ-संग्रहालय में इसकी
पूरी और शुद्ध प्रति मिल जाय । इस महत्वपूर्ण वृत्ति का प्रकाशन अवश्य होना
चाहिए ।" इत्यादि ॥ इसके आगे प्रति के यावद्वाच्य श्राद्यन्त अंशों को उद्धृत
किया गया है । अन्तिम पुष्पिका इस प्रकार है-
-AA
 
" इति श्रीप्रशस्तिः समाप्ता तत्समाप्तौ च समाप्तेयं श्रीकुम्भकर्ण विनिर्मिता
चण्डोशत महाकाव्यवृत्ति: । ग्रंथाग्र २४०० ॥ श्रीरस्तु ॥
 
संवत् १६७५ वर्षे ज्येष्ठ सुदी ११ तिथी सूर्यवारे । श्री श्री श्री सागरचन्द्र-
से हुआ था । इस राव मण्डलीक को पराजित करके गुजरात के सुलतान महमूद वेगड़ा ने
'मुसलमान बना लिया था। कोई कहते हैं कि पहले ही अनबन हो जाने के कारण रमाबाई
पीहर में श्रा कर रहने लगी थी और कुछ लोगों का मत है कि राव के मुसलमान हो जाने के
बाद वह यहां ग्रा गई थी। महाराणा ने 'जावर' उसको खानगी में दे दिया था। वहाँ उसने
रमाकुण्ड का निर्माण कराया था जिसका शिलालेख पास ही के रामस्वामी के विष्णुमन्दिर
में लगा हुआ है ।
 
.
 
इसके अतिरिक्त 'प्रामेर के राजाओं की वंशावली' में राजा उद्धरण (१४९६-१५२४
वि० स० ) की चार में से एक पत्नी का नाम 'देदाँबाई, राणा कुम्भा को वेटो' लिखा मिलता
है । इससे ज्ञात होता है कि महाराणा कुम्भा और प्रामेर के राजाओं में उस समय ऐसा
सम्बन्ध था । यद्यपि कुम्भलगढ़ की प्रशस्ति में 'ग्राम्रदाद्रिदलन' विरुद का उल्लेख है, परन्तु
साथ ही इससे यह भी मालूम होता है कि उस समय ऐसा रिवाज था कि प्रबल राजपूत शासक
अपने आसपास के इलाकों पर चढ़ाइयाँ करते थे श्रोर थोड़ी बहुत लड़ाई होने के बाद उनमें
प्रापस में लड़को दे कर या ले कर मेल हो जाता था। इसी के अनुसार यह सम्बन्ध हुआ
होगा ।
 
CC-0. RORI. Digitized by Sri Muthulakshmi Research Academy