2023-03-13 13:34:38 by ambuda-bot
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दण्ड । जब ये सव विफल हो गए तो महिष-वध में चण्डिका का चरण पंचम
उपाय के समान कृतकार्य हुआ । यही बात शब्दच्छल से एक पद्य में कही गई
है। ब्रह्मा के द्वारा 'साम प्रयोग' (सामवेद के आशीर्वाक्यों) से उस शत्रु का
समाधान नहीं हुआ, हरि (विष्णु) का सुदर्शन चक्र भी उसका 'भेद' (छेद) नहीं
कर सका, इन्द्र को अपने पर सवार किए हुए ऐरावत हाथी को 'दानवृष्टि'
(मदझरण) से भी वह केवल कलुषित (ॠद्ध) ही हुआ और यमराज के 'दण्ड' से
भी जो वश में नहीं हुआ, ऐसे उस शत्रु का नाश करने में सफल पंचम उपाय
के समान देवी का चरण आपके पापों का नाश करे । '
जब महिष के प्राण निकल गए और वह पृथ्वी पर लोट गया तब देवी ने
उच्च हास किया; उस समय उनके दाँतों की शुभ्र कान्ति से अनवसर ही महिष का
विशाल मृत शरीर कैलाश के समान सफेद दिखाई पड़ने लगा जिससे बहुतों को
भ्रम हुआ; उसकी ऊँचो शृङ्गाग्रभूमि (सींगों की नोकों) पर देवगणों ने गिरिशृङ्ग
समझ कर आश्रय ग्रहण किया; जल्दी से दिशाओं के हाथी उसके कानों की
गुफाओं को कुंज समझ कर उनमें घुसने लगे; और तो और, स्वयं शिवजी भी
उसको कैलास ही समझ कर उसकी पीठ पर चढ़ गए । यह सब देख कर
मुस्कराती हुई देवी प्रापकी रक्षा करे । २
29
इस प्रकार चण्डीशतक में कुल १०२ पद्य हैं जिनको उक्ति-वैविध्य के
आधार पर इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है -
देवी की उक्ति
पद्याङ्क
स्वयं के प्रति
जया के प्रति
देवताओं के प्रति
शिव के प्रति
22
[
}}
२२ ]
३.
T
"
"
१
२४, २६, ५६, ६०
३१, ४८, ६१
साम्ना नाम्नाययोनेधू तिमकृत हरेर्नापि चक्रेण भेदात्
सेन्द्रस्यं रावणस्याप्युपरि कलुषितः केवलं दानवृष्ट्या
दान्तो दण्डेन मृत्योनं च विफलयथोक्ताभ्युपायो हतारि
येनोपायः स पादो नुदतु भवदघं पञ्चमश्चण्डिकायाः ॥४६॥
तुङ्गां शृङ्गाग्रभूमिश्रितवति मरुतां प्रोतकाये निकाये
कुञ्जौत्सुक्याद्
द्विशत्सु श्रुतिकुहरपुटं द्राक्ककुप्कुञ्ज रेषु ।
स्मित्वा वः संहृतासोर्दशन रुचिकृताऽकाण्डकैलासभासः
पायात् पृष्ठाधिरूढे स्मरमुषि महिषस्योच्चहासेव देवी ॥५०॥
कुम्भकर्णकृतवृत्ति वाली रा. प्रा. प्र. की प्रति में केवल १०१ ही वलोक है ।
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उपाय के समान कृतकार्य हुआ । यही बात शब्दच्छल से एक पद्य में कही गई
है। ब्रह्मा के द्वारा 'साम प्रयोग' (सामवेद के आशीर्वाक्यों) से उस शत्रु का
समाधान नहीं हुआ, हरि (विष्णु) का सुदर्शन चक्र भी उसका 'भेद' (छेद) नहीं
कर सका, इन्द्र को अपने पर सवार किए हुए ऐरावत हाथी को 'दानवृष्टि'
(मदझरण) से भी वह केवल कलुषित (ॠद्ध) ही हुआ और यमराज के 'दण्ड' से
भी जो वश में नहीं हुआ, ऐसे उस शत्रु का नाश करने में सफल पंचम उपाय
के समान देवी का चरण आपके पापों का नाश करे । '
जब महिष के प्राण निकल गए और वह पृथ्वी पर लोट गया तब देवी ने
उच्च हास किया; उस समय उनके दाँतों की शुभ्र कान्ति से अनवसर ही महिष का
विशाल मृत शरीर कैलाश के समान सफेद दिखाई पड़ने लगा जिससे बहुतों को
भ्रम हुआ; उसकी ऊँचो शृङ्गाग्रभूमि (सींगों की नोकों) पर देवगणों ने गिरिशृङ्ग
समझ कर आश्रय ग्रहण किया; जल्दी से दिशाओं के हाथी उसके कानों की
गुफाओं को कुंज समझ कर उनमें घुसने लगे; और तो और, स्वयं शिवजी भी
उसको कैलास ही समझ कर उसकी पीठ पर चढ़ गए । यह सब देख कर
मुस्कराती हुई देवी प्रापकी रक्षा करे । २
29
इस प्रकार चण्डीशतक में कुल १०२ पद्य हैं जिनको उक्ति-वैविध्य के
आधार पर इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है -
देवी की उक्ति
पद्याङ्क
स्वयं के प्रति
जया के प्रति
देवताओं के प्रति
शिव के प्रति
22
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२२ ]
३.
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१
२४, २६, ५६, ६०
३१, ४८, ६१
साम्ना नाम्नाययोनेधू तिमकृत हरेर्नापि चक्रेण भेदात्
सेन्द्रस्यं रावणस्याप्युपरि कलुषितः केवलं दानवृष्ट्या
दान्तो दण्डेन मृत्योनं च विफलयथोक्ताभ्युपायो हतारि
येनोपायः स पादो नुदतु भवदघं पञ्चमश्चण्डिकायाः ॥४६॥
तुङ्गां शृङ्गाग्रभूमिश्रितवति मरुतां प्रोतकाये निकाये
कुञ्जौत्सुक्याद्
द्विशत्सु श्रुतिकुहरपुटं द्राक्ककुप्कुञ्ज रेषु ।
स्मित्वा वः संहृतासोर्दशन रुचिकृताऽकाण्डकैलासभासः
पायात् पृष्ठाधिरूढे स्मरमुषि महिषस्योच्चहासेव देवी ॥५०॥
कुम्भकर्णकृतवृत्ति वाली रा. प्रा. प्र. की प्रति में केवल १०१ ही वलोक है ।
CC-0. RORI. Digitized by Sri Muthulakshmi Research Academy