2023-03-13 13:34:38 by ambuda-bot
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वही लाल समुद्र प्रापकी रक्षा करें । '
देवी ने पति के (तीनों) नयनों के मुकाबले में अपने तीन प्रकार के रूप
(वर्ण) प्रकट किए। पहले तो समस्त संसार को मानो प्रलय के समय प्राकुल
हो, ऐसा देख कर (शिव के धूमाकुल प्राग्नेय नेत्र के समान ) काली रूप धारण
किया; फिर, दिति के पुत्र ( दैत्य महिप) को खण्डित कर देने वाली देवी पैर
में सींग लग जाने से मत्सर (ोध) के कारण (सूर्य के समान) रक्तवर्णा हो
गई; तदनन्तर, जब चरणाघात से चकनाचूर होकर मृत महिष गिर गया तो
अपने पूर्व ( सहज ) स्वभाव के अनुसार वह पुन: (चंद्रमा के समान ) गौरी हो
गई । इस प्रकार जिस गौरी (पार्वती) ने महिष-वध के प्रसंग में अपने पति
(शिव) के अग्नि, सूर्य और चंद्र-संज्ञक नेत्रों के समान तीन वर्ण प्रकट किए वह
आपकी रक्षा करे ।
[ २१ ]
देवी का चरण स्वभावतः लाल है, कोप के कारण वह और भी लाल हो
गया जिससे लाक्षारस ( यावक) की शोभा अधिक दिखाई पड़ने लगी; महिष
शृङ्ग के ऊँचे कोण से टकरा कर मणिमय नूपुर भनक उठा, वही मानों
उसकी प्रान्तरिक हुंकार है, ऐसा वह चरण जब महिष पर रखा गया तो दैत्यों
ने उसको कोप के कारण लाल-लाल लाख के रस के समान वर्णधारी और
हुंकार करते हुए दूसरे यमराज के समान उस ( महिष) पर बैठा हुआ देखा;
वही देवी का अरुण चरण आपके शत्रुओं का नाश करे। 3
कार्य-साधन के लिए चार ही उपाय बताए गए हैं- साम, दाम, भेद और
T
१.
नीते निर्व्याजदीर्घामघवति मघववज्वलज्जानिदाने
निद्रां द्रागेव देवद्विषि मुषितभियः संस्मरन्त्याः स्वभावम् ।
देव्या दृग्भ्यस्तिसृभ्यस्त्रय इव गलिता राशयः शोणितस्य
प्रायन्तां त्वां त्रिशूलक्षतकुहरभुवो लोहिताम्भः समुद्राः ॥४०॥
काली कल्पान्तकालाकुलमिव सकलं लोकमालोक्य पूर्व
पश्चात् श्लिष्टे विषाणे विदितदितिसुता लोहिनी मत्सरेण ।
पादोस्पिष्ट परासी निपतति महिपे प्राक्स्वभावेन गौरी
गोरी वः पातु पत्युः प्रतिनयनमिवाविष्कृतान्योन्यरूपा ॥४१॥
कोपेनवारुणत्वं दवदधिकतर ISSलक्ष्यलाक्षारसश्री:
दिलष्यच्छ्रङ्गाग्र कोणकुवरिणतम रिणतुला कोटिहुङ्कारगर्भः ।
प्रत्यासन्नात्ममृत्युः प्रतिभयमसुरैरीक्षितो हन्त्वरीन्वः
दो देव्याः कृतान्तोऽपर इव महिषस्योपरिष्टान्निविष्टः ॥४४॥
CC-0. RORI. Digitized by Sri Muthulakshmi Research Academy
देवी ने पति के (तीनों) नयनों के मुकाबले में अपने तीन प्रकार के रूप
(वर्ण) प्रकट किए। पहले तो समस्त संसार को मानो प्रलय के समय प्राकुल
हो, ऐसा देख कर (शिव के धूमाकुल प्राग्नेय नेत्र के समान ) काली रूप धारण
किया; फिर, दिति के पुत्र ( दैत्य महिप) को खण्डित कर देने वाली देवी पैर
में सींग लग जाने से मत्सर (ोध) के कारण (सूर्य के समान) रक्तवर्णा हो
गई; तदनन्तर, जब चरणाघात से चकनाचूर होकर मृत महिष गिर गया तो
अपने पूर्व ( सहज ) स्वभाव के अनुसार वह पुन: (चंद्रमा के समान ) गौरी हो
गई । इस प्रकार जिस गौरी (पार्वती) ने महिष-वध के प्रसंग में अपने पति
(शिव) के अग्नि, सूर्य और चंद्र-संज्ञक नेत्रों के समान तीन वर्ण प्रकट किए वह
आपकी रक्षा करे ।
[ २१ ]
देवी का चरण स्वभावतः लाल है, कोप के कारण वह और भी लाल हो
गया जिससे लाक्षारस ( यावक) की शोभा अधिक दिखाई पड़ने लगी; महिष
शृङ्ग के ऊँचे कोण से टकरा कर मणिमय नूपुर भनक उठा, वही मानों
उसकी प्रान्तरिक हुंकार है, ऐसा वह चरण जब महिष पर रखा गया तो दैत्यों
ने उसको कोप के कारण लाल-लाल लाख के रस के समान वर्णधारी और
हुंकार करते हुए दूसरे यमराज के समान उस ( महिष) पर बैठा हुआ देखा;
वही देवी का अरुण चरण आपके शत्रुओं का नाश करे। 3
कार्य-साधन के लिए चार ही उपाय बताए गए हैं- साम, दाम, भेद और
T
१.
नीते निर्व्याजदीर्घामघवति मघववज्वलज्जानिदाने
निद्रां द्रागेव देवद्विषि मुषितभियः संस्मरन्त्याः स्वभावम् ।
देव्या दृग्भ्यस्तिसृभ्यस्त्रय इव गलिता राशयः शोणितस्य
प्रायन्तां त्वां त्रिशूलक्षतकुहरभुवो लोहिताम्भः समुद्राः ॥४०॥
काली कल्पान्तकालाकुलमिव सकलं लोकमालोक्य पूर्व
पश्चात् श्लिष्टे विषाणे विदितदितिसुता लोहिनी मत्सरेण ।
पादोस्पिष्ट परासी निपतति महिपे प्राक्स्वभावेन गौरी
गोरी वः पातु पत्युः प्रतिनयनमिवाविष्कृतान्योन्यरूपा ॥४१॥
कोपेनवारुणत्वं दवदधिकतर ISSलक्ष्यलाक्षारसश्री:
दिलष्यच्छ्रङ्गाग्र कोणकुवरिणतम रिणतुला कोटिहुङ्कारगर्भः ।
प्रत्यासन्नात्ममृत्युः प्रतिभयमसुरैरीक्षितो हन्त्वरीन्वः
दो देव्याः कृतान्तोऽपर इव महिषस्योपरिष्टान्निविष्टः ॥४४॥
CC-0. RORI. Digitized by Sri Muthulakshmi Research Academy