2023-03-13 19:50:32 by manu_css
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वचनों को श्रोत्र-पुटों से पी जाती थी, या प्रिय के द्वारा श्रोत्र-पुटों से पीने योग्य
वचन कहती थी । इस प्रकार जैसे शिव के प्रति नर्मकर्म में उद्यत होती थी वैसे
ही महिष के प्रति रणकर्म में उद्युक्त होने वाली पार्वती
इस पद्य में श्लिष्ट पदों द्वारा रणकर्मोचित और नर्मकर्मोचित परस्पर
विरुद्ध
वेशपटु बाण का ही सामर्थ्य है ।
भी इस पद्य को उद्धृत किया है, जिसमें उसने चण्डीशतक के कर्ता के रूप में
बाणभट्ट को स्पष्ट स्वीकार किया है ।
महिष-वध के अनन्तर उपद्रव शान्त हो जाने पर जब शिव और पार्व
उस घटना की बातें करने लगे तो देवी (पार्वती) ने शम्भु का इस प्रकार परिहास
किया-
इस पर मुझे क्रोध नहीं
अच्छा ही हुआ क्योंकि इससे कोई निःसपत्न हो गया, ( नदी होने के कारण
गङ्गा समुद्र की भी पत्नी है और शङ्कर भी उसे पत्नी बना कर सिर चढ़ाए हुए
हैं, अब रीते हो जाने के कारण समुद्रों के न रहने पर कोई (शिव) निस्सपत्न
हो गया, अच्छा हुआ
महाराज जिसको माथे पर धारण करने योग्य मानते हैं वह गङ्गा महिष के
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[^१
स्मेरा हासप्रगल्भे प्रियवचसि कृतश्रोत्रपेयाधिकोक्तिः ।
उद्युक्ता नर्मकर्मण्यवतु पशुपती पूर्ववत् पार्वती वः
कुर्वा
[^२
त्तद्भङ्गिभि
प्र
अमरुकशतक का यह श्लोक भी यहाँ द्रष्टव्य है-
T
क्षिप्तो हस्तावलग्नः प्रसभमभिहतोऽप्याददानोंऽशुका
गृह्णन् केशेष्वपास्तचरणनिपतितो नेक्षितः सम्भ्रमेण ।
आलिङ्गन् योऽवधुतस्त्रिपुरयुवतिभिः साश्रुनेत्रोत्पलाभिः
कामीवार्द्रापराधः स दहतु दुरितं शाम्भवो वः शराग्निः ॥ २॥
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