2023-03-13 19:49:32 by manu_css
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में घुस गए जिससे रक्त की तीन धाराएं (
उनको देख कर देवगण इस प्रकार उत्प्रेक्षाएं करने लगे-
लोकों
लाल-लाल जि
(विष्णु) के चरण-कमल की (
धाराएं लाल हो गई हैं; या (त्रिकालसन्ध्योपासक
होकर तीनों संध्याएं स्वयं एक साथ उपस्थित हो गई हैं[^१] ?
इस पद्य में रक्तधाराओं के विषय में उत्प्रेक्षा करते हुए कवि ने संध्या की
लालिमा का वर्णन करके अपनी प्रकृति-निरीक्षण की भावना का परिचय दिया
है । कादम्बरी में भी जगह-जगह संध्या-वर्णन हुआ है । साथ ही, त्रिकाल संध्यो-
पासन का दिवसकृत्य का मुख्य अंग होना भी सूचित किया है । महिष-वध के
समय प्रलयकाल का-सा दृश्य उपस्थित हो जाना भी यम-जिह्वा
होता है ।
जब भवानी ने महिष पर पादप्रहार किया तो उसका रक्त चरण में लग
जाने से वह अलक्तकरञ्जित-सा हो गया । ऐसी अरुणचरण वाली देवी ने
सम्मुखागत समरोद्यत पशुपति (पशुओं के सरदार महिष) के प्रति कुछ-कुछ
वैसी ही चेष्टाएं कीं जैसी पहले उसने नर्मकर्मोद्यत पशुपति (शिव) के प्रति की
थीं । उसकी (महिष की
चेष्टा पर निगाह रक्खी) जैसे पहले पशुपति (शिव) के प्रति आसक्त होकर
आँखों में आँखें डाल देती थी; जब वह (महिष) सामने आया तो दे
सामने डट गई, जैसे पशुपति (
भी अभिमुखी (अनुकूल) हो जाती थी;
पर वह (देवी) मुस्करा कर रह गई (
हँसी में टाल दिया) जैसे पहले भगवान् शंकर के चतुराई-भरे हास्य वचन
कहने पर प्रसन्नता और लज्जा से आँखों ही आँखों में हँसती थी; जब दे
प्रियतम शङ्कर के विषय में महिष कोई (कटाक्ष और
T
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[^१
कि
किं वा कृष्णाङ्घ्रिपद्मद्युतिभिररुणिता विष्णुपद्याः पदव्यः ।
प्राप्ताः सन्ध्याः स्म
दे
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