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ब्रह्मा, विष्णु और शिव तथा अन्य प्रमुख देवों ने अपने-अपने
शस्त्रास्त्रों से उस देवी को सन्नद्ध किया
किया जिससे समस्त लोक कम्पायमान हो गए । महिष ने भी क्रोधित होकर
कहा '
दौ
और वह अपनी सहस्रभुजाओं को चारों दिशाओं में फैला कर स्थित है
इसके बाद दोनों ओर से युद्ध
चामर, उदग्र, कराल, वाष्कल, ताम्र, अन्धक, अतिलोम, उग्रास्य, उग्रवीर्य,
महाहनु, विडालास्य, महासुर और दुर्मुख नामक चौदह सेनापतियों का बात की
बात में हनन कर दिया
विविध रूप धारण करके युद्ध किया और अन्त में अपने उन विविध रूपों की
कापाल
सभी देवताओं और देवी को गर्जन-तर्जन करता हुआ सोत्प्रास वचन कहने
लगा ।[^३] उस समय देवी मधु-पान करने लगी थी। उसने कहा 'मूढ ! मैं मधुपान
करूं तब तक गर्जन कर ले, अभी मेरे द्वारा तेरा वध होने पर ये सभी देवता
प्रसन्न होकर गर्जने लगेंगे ।' ऐसा कह कर उस देवी ने अपने पैर की ठोकर मार
कर तथा तलवार से शिर काट कर उस महान् असुर को विगत-
देवताओं में हर्ष की लहर दौड़ गई और श
देवी की स्तुति की
यह महिषासुर
इसी कथा के विविध सूत्रों को लेकर महाकवि बा
की रचना की है। प्रत्येक श्लोक में वर्णित देवी के स्वरूप और नाम से मङ्गल-
कामना की गई है ।
पौराणिक कथाओं का मूल स्रोत वेद है। वैदिक विद्याओं के उपबृंहण
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[^१
•
[^२] 'स ददर्श ततो देवीं व्याप्तलोकत्रयां त्विषा' । दु. स. २-३६
२.
[^३
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