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भक्तामरस्तोत्र के रचयिता मानतुङ्गाचार्य के विषय में जैन-पट्टावलियों में
लिखा है कि वे प्रद्योतन
स्तोत्र की रचना करके बाण और मयूर पण्डित की विद्या से चमत्कृत क्षितिपति
को प्रतिबोधित किया था; परन्तु
इक्कीसवें आचार्य श्री
अर्थात् विक्रमीय संवत् ३०० में नागपुर में नमि-भवन की प्रतिष्ठा की
का समय और यह सम्वत् मेल नहीं खाता है। उधर, एक और मत यह है कि
मानतुङ्ग मालवा के चालुक्यवंशीय अधिपति वैरिसिंह के मन्त्री थे, जिसका समय
८५० ई० से
मालवा के परमार
प्रभावक-
और उन्होंने वहाँ पर बनारस में बाण और मयूर को परास्त किया ।
वामन की काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति में कादम्बरी
उद्धरण मिलते हैं और सम्भवतः बा
रगा
रण हैं । वामन का समय आठवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध माना जाता है। इतना
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[^१
दत्तानन्दाः प्रजानां समुचित समयाकृष्टसृष्
पूर्वा
दीर्
गावो वः पावनास्ताः परमपरिमितां प्रीतिमुत्पादयन्तु ॥
नो कल्पापायवायोरदयरयदलत्क्ष्मा
गाढोत्कीर्णोज्ज्वलश्रीरहनि न रहिता नो तमः कज्जलेन ।
प्राप्तोत्पत्तिः पतङ्गान्न पुनरुपगता मोषमुषणत्विषो वो
व
वर्त्तिः
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[^२] २१.<error> एगवीसति</error><fix>एकविंशतिः</fix>, श्रीमानतुंगसूरिपट्
सप्ततिसप्तशतवर्षे, विक्रमतः त्रिशती ३०० वर्षे नागपुरे श्रीनमिप्रतिष्ठा
२. २१. एगवीसति,
नागपुरे नमिभवन-प्रतिष्ठया महितपा
अभवद्वीराचार्य
[^३
T
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