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चन्द्रापीड़ की सेना का अपूर्व रव हर का अट्टहास है और उसकी प्रतिध्वनि
त्र्यम्बक के वृषभ का स्वर है
प्राकृतिक, सभी पदार्थों में महाकवि का आत्मा उमा-माहेश्वर की शाश्वत सत्ता
का अनुसन्धान करता रहता है ।
हर्षचरित में भी सबसे पहले शिव और उमा का ही स्तवन किया गया है-
—
नमस्तुङ्ग
त्रैलोक्यनगरारम्भमूलस्तम्भाय शम्भवे ॥१॥
हरकण्ठग्रहानन्दमीलिताक्षीं नमाम्युमाम् ।
कालकूट
प्रा
आगे
वह स्नानादिक से निवृत्त होकर देव-देव विरूपाक्ष शिव की क्षीरधारापुरःसर
पूजा करता है, इत्यादि ।
इन सभी उल्लेखों से स्पष्ट है कि महाकवि बा
भक्त था और उसके द्वारा चण्डिका
वध
वघ-वर्णनात्मिका शतप्रमाणश्लोकरचना असम्भावित नहीं लगती है ।
भोजदेव-
-
बा
सबसे पहला उल्लेख प्राप्त है ।
काव्यप्रकाश में भी मम्मट ने बा
अ
श्रमरुकशतक पर अर्जुनवर्मदेव ने टीका लिखी है, उसमें भी बा
चण्डीशतक का स्पष्ट उल्लेख है और पद्याङ्क ३७ उद्धृत किया गया है ।
चण्डीशतक की रचना को लेकर कुछ ऐसी किम्वदन्तियां प्रचलित हैं कि
सुपुष्ट ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा निराकृत होने पर भी वे लोकमानस से विलग
नहीं होतीं। कहते हैं कि सूर्यशतक के कर्ता मयूर कवि बाणभट्ट के साले[^२] थे ।
एक बार वे उनसे मिलने बहुत सवेरे ही जा पहुँचे । बाण की पत्नी रात भर से
रूठी हुई थी और मानती ही नहीं थी । बाण तो कवि ठहरे । वे इस रूठ-मनो-
व
बल के प्रसङ्ग में एक पद्य रचने लगे जिसके तीन चरण तो बन गए थे और
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