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एक बार राजा श्वेत ने किसी भिखारी को कुछ दिए बिना ही स्वयं
भोजन कर लिया था इसलिए मरने के बाद परलोक में उसे खाने को
कुछ नहीं दिया गया, भूख के मारे उसे अपना ही मांस नोच-
नोचकर खाना पड़ा ॥७॥
 
जपहोमार्चनं कुर्यात् सुधौतचरणः शुचिः ।
पादशौचविहीनं हि प्रविवेश नलं कलिः ॥८॥
अच्छी तरह पैर धोकर ही जप, होम और देवताओं का पूजन
करना चाहिए। पैरों को पवित्र रखने के कारण ही राजा नल के
शरीर में कलियुग ने प्रवेश किया ॥८॥
 
न सञ्चरणशीलः स्यान्निशि निःशङ्कमानसः ।
माण्डव्यः शूललीनोऽभूदचौरचौरशङ्कया ॥९॥
निर्भय होकर रात में न घूमना चाहिए। रात में निर्भय होकर
घूमने के कारण ही चोर न होते हुए भी माण्डव्य ऋषि को चोर
समझकर उन्हें शूली पर चढ़ा दिया गया था ॥६॥
 
न कुर्यात् परदारेच्छां विश्वासं स्त्रीषु वर्जयेत् ।
हतो दशास्यः सीतार्थे हतः पत्न्या विदूरथः ॥१०॥
मनुष्य को चाहिए कि परायी स्त्री पर अनुराग और स्त्रियों पर
विश्वास न करे। राम-पत्नी सीता की कामना रखने से ही रावण का
वध हुआ तथा पत्नी (पर विश्वास करने) के कारण ही विदूरथ
मारा गया॥१०॥
 
न मद्यव्यसनी क्षीवः कुर्याद् वेतालचेष्टितम् ।
वृष्णयो हि ययुः क्षीबास्तृणप्रहरणाः क्षयम् ॥११॥
न मद्य का व्यसन करे और न प्रमत्त होकर अमानवीय व्यवहार