2022-08-01 10:55:05 by Andhrabharati
This page has been fully proofread twice.
ध्यान करना चाहिए । शर-शय्या पर पड़े हुए भीष्म ने गरुड़डध्वज
भगवान् का ध्यान किया था ॥ ९९ ॥
श्रव्या श्रीव्यासदासेन समासेन सतां मता ।
क्षेमेन्द्रेण विचार्येयं चारुचर्या प्रकाशिता ॥ १०० ॥
सज्जनों द्वारा अनुमोदित, सुनने योग्य इस चारुचर्या को व्यासजी
के अनुचर क्षेमेन्द्र ने भलीभाँति विचार कर संक्षेप में प्रकाशित
किया है ॥ १०० ॥
इति श्रीप्रकाशेन्द्रात्मजव्यासदासापराख्यमहाकविश्रीक्षेमेन्द्रकृता
चारुचर्या समाप्ता ॥
भगवान् का ध्यान किया था ॥ ९९ ॥
श्रव्या श्रीव्यासदासेन समासेन सतां मता ।
क्षेमेन्द्रेण विचार्येयं चारुचर्या प्रकाशिता ॥ १०० ॥
सज्जनों द्वारा अनुमोदित, सुनने योग्य इस चारुचर्या को व्यासजी
के अनुचर क्षेमेन्द्र ने भलीभाँति विचार कर संक्षेप में प्रकाशित
किया है ॥ १०० ॥
इति श्रीप्रकाशेन्द्रात्मजव्यासदासापराख्यमहाकविश्रीक्षेमेन्द्रकृता
चारुचर्या समाप्ता ॥