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वृद्धावस्था आ जाने पर, बाल पक जाने पर तपोवन की ओर रुचि
रखनी चाहिए । कुरु आदि प्राचीन धीर राजाओं ने अन्तिम अवस्था
में तपोवन का ही रास्ता लिया था ॥ ९५ ॥
 
पुनर्जन्मजराच्छेदकोविदः स्याद् वयःक्षये ।
विदुरेण पुनर्जन्मबीजं ज्ञानातले हुतम् ॥ ९६ ॥
वृद्धावस्था आ जाने पर मोक्ष प्राप्त करने का उपाय करना
चाहिए जिससे दुबारा न वृद्ध होना पड़े, न पैदा होना पड़े । विदुर ने
पुनर्जन्म का बीज (शुभाशुभ कर्म) ज्ञानरूपी अग्नि में भस्म कर
डाला था ।। ९६ ॥
 
परमात्मानमन्तेऽन्तर्ज्योतिः पश्येत् सनातनम् ।
तत्प्राप्त्या योगिनो जाताः शुकशान्तनवादयः ॥ ९७ ॥
मृत्युकाल में परमात्मा की सनातन ज्योति का दर्शन अपने हृदय
के अन्दर करना चाहिए । शुकदेव, भीष्म आदि उसी ज्योति को प्राप्त
कर योगी हो गए ॥ ९७ ॥
 
प्राप्तावधिरजीवेऽपि जीवेत् सुकृतसंततिः ।
जीवन्त्यद्यापि मांधातृमुखाः कायैर्यशोमयैः ॥ ९८ ॥
निश्चित अवधि पर मर जाने से पूर्व ही अच्छे कामों से जीवित
रहने का उपाय करना चाहिए । मान्धाता आदि पुण्यात्मा महापुरुष
आज भी अपने यशःशरीर से जीवित हैं ॥ ९८ ॥
 
अन्ते संतोषदं विष्णुं स्मरेद्धन्तारमापदाम् ।
शरतल्पगतो भीष्मः सस्मार गरुडध्वजम् ॥ ९९ ॥
अन्तकाल में सन्तोष देने वाले विपत्ति-नाशक भगवान् विष्णु का