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शक्तिहीन हो जाने पर आदमी को सहनशील बन जाना चाहिए।
निर्बल होकर किसी सबल पर आक्रमण या आक्षेप न करना चाहिए ।
कार्तवीर्य अर्जुन ने रावण को आक्षेप करने के कारण ही बाँध
लिया था ॥ ४७ ॥
 
वेश्यावचसि विश्वासी न भवेन्नित्यकैतवे ।
ऋष्यशृङ्गोऽपि निःसङ्गः शृङ्गारी वेश्यया कृतः ॥ ४८ ॥
 
सदा धूर्त्तता से भरे हुए वेश्या के वचन पर भूलकर भी विश्वास न
करना चाहिए । योगी और विरागी होते हुए भी ऋष्यशृङ्ग वेश्या
द्वारा आसक्त और शृङ्गारी बना दिये गये ॥ ४८ ॥
 
अल्पमप्यवमन्येत न शत्रुं बलदर्पितः ।
रामेण रामः शिशुना ब्राह्मण्यदययोज्झितः ॥ ४९ ॥
 
शक्ति के अभिमान से चूर होकर छोटे से छोटे शत्रु का भी
अपमान न करना चाहिए । शक्ति के अभिमान से चूर परशुराम को
बाल रूप राम ने ब्राह्मण समझकर ही छोड़ा था ॥ ४९ ॥
 
नृशंसं क्रूरकर्माणं विश्वसेन्न कदाचन ।
जगद्वैरी जरासंधः पाण्डवेन द्विधा कृतः ॥ ५० ॥
 
हत्यारों और क्रूर कर्म करनेवालों का कभी विश्वास न करना
चाहिए । भीम ने संसार के परम शत्रु जरासन्ध को बीच से चीर
डाला ॥ ५० ॥
 
औचित्यप्रच्युताचारो युक्त्या स्वार्थं न साधयेत् ।
व्याजवालिवधेनैव रामकीर्तिः कलङ्किता ॥ ५१ ॥
 
उचित और अनुचित पर ध्यान न देकर युक्ति से अपने स्वार्थ का
साधन न करना चाहिए । छल से बावालि का वध करने के कारण ही
भगवान् राम की कीर्ति कलंकित हुई ॥ ५१ ॥