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सर्वस्वनाशे सजाते
सर्वारम्भेण तत् कुर्यात्
सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति
 
सर्वो दण्डजितो लोक:
 
सलज्जा गणिका नष्टा
 
स वृक्षाग्रेषु संसुप्त :
सागरा भेदमिच्छन्ति
 
साधुपथस्थितो राजा
 
सामन्तरहितो राजा
 
साम्ना दानेन भेदेन
 
सिंहरूपेण राजानः
 
सिंहादेकं बकादेकं
सुकुले योजयेत् कन्यां
सुकृतं वर्धते तेन
सुखदुःखसमा धीराः
 
सुखप्रवृत्ता: साध्यन्ते
 
सुश्रान्तोऽपि वहेद् भारं
 
सुहृत्कार्येषु निर्वृत्तिः
सुहृदामुपकारकरणाद्
 
सुहृद् बन्धुः स्वामी
सेव्यतां मध्यभागेन
 
INDEX
 
श्लोकसंख्या
 
१४०
 
१२
 
५०
 
१००
 
९८
 
१२१
 
२०४
 
२०
 
१८७
 
१३४
 
२४४
 
११
 
१३६
 
१८८
 
स्त्रीणां राजकुलानां च
 
स्त्रीनायका विनश्यन्ति
 
स्त्रीनायके न वस्तव्यं
 
१७
 
१७४
 
२७३
 

 
२७२
 
स्त्रीभिः कस्य न खण्डितं
 
स्त्री मद्यादनवेक्षणादपि
 
.
 
स्त्री विनश्यति रूपेण
 
स्त्रीषु राजसु सर्पेषु
 
स्वं राष्ट्र पालयेन्नित्यं
 
स्वगृहेऽपि दरिद्राणां
 
स्वदेशे पूज्यते राजा
 
"
 
स्वयमाक्रम्य भुञ्जीत
 
स्वयमेव लयं याति
 
स्वामिभक्तश्च शूरश्च
 
१९८
 
९४ हतं ज्ञानं क्रियाहीनं
 
हृतं निर्मायकं सैन्यं
 
हृतमश्रोत्रियं श्राद्धं
 
हता रूपवती वन्ध्या
 
हे जिह्वे कटुकने हे
 
181
 
श्लोकसंख्या
 
२६९
 
११०
 
१११
 
२६१
 
१९०
 
1
 
१७८
 
१६६
 
५७
 
१४
 
२८
 
१६
 
१५७
 
"
 
१५८
 
"
 
१३२