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श्लोकाः
 
ओजायमाना
ओषांचकार
 
औष्ण्यं सजेन्मध्य •
 

 
औ.
 
कुण्डपाय्यवताम्
कुतोऽधियास्यसि
 
क.
 
कः कृत्वा रावणा
 
कः पण्डितायमानः
 
कथं दुष्टुः
कथं वजीविपुस्ते च
कपयोsविभयुः
कपितोयनिधीन्
कपिनाऽऽम्भोधि०
कपिष्पृष्ठगतौ
कपिर्जगाद...
 
कपिश्चङ्क्रमणो
कमण्डलुकपालेन
 
...
 
9...
 
कम्वूनथ समादध्मुः
कम्राभिरावृतः
 
करिष्यमाणम्
 
करोति वैरम्
कर्णेजपैराहित •
कर्तास्मि कार्यम्
 
कलहरिकण्ठ ●
कल्पिष्यते हरे
का त्वमेकाकिनी
कान्ता सहमाना
 
कान्ति खाम्
 
कामो जनस्य
कार्यसारनिभम्
काल्यमिदं विहितम्
किंचित्रोपावदिष्टासौ
किं दुर्नयैस्त्वय्यु •
 
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...
 
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...
 
81.
 
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…..
 
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***
 
DOO
 
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...
 
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...
 
ढोकाङ्काः
 
श्लोकाः
 
कुमुदवन •
 
२५९ । कुम्भकर्णस्वतो
२९२ । कुम्भकर्णसुत
कुम्भकर्णे हते
कुम्भकर्णो रणे
कुरु बुद्धिम्...
कुर्याद्योगिनम्
 
७७८
 
२५८ । कुर्यास्तथा येन
४२३ । कुर्वन्ति परिसारिण्यः
कुर्वन्तो हवम्
कुलभार्याम्...
कृतं सर्व यथोद्दिष्टम्
 
१२५४
 
१४०४
 
८३७
 
६७९ । कृताभिषेको०
८५३ । कृती श्रुती
८०१ कृते कानिष्ठिनेयस्य...
४५० । कृते नोपकृतम्
कृतेषु पिण्डोदक ०.
 
९९५
 
....
 
२४५
 
१०७० । कृते सौभागिनेयस्य
४५८ कृतैरपि दृढ
 
१९२
 
कृत्वा कर्म
 
१०१४
 
कृत्वा लड्ङ्का०
 
कृत्वा वालि●
 
...
 
...
 
-
 
...
 
८९
 
४६६ । कृशानुवर्ष्मण्यधि०.
१०५३ । कृषीढूं भर्तु •
१३१६ । केचित्संचुकुटुः
२४९ केचिद्वेपथुम्
८२६ । केचिन्निनिन्दुः
५९१ केन संभावितम्
१५२० केन संविद्रते नाऽन्यः
 
४६७ । केन संविद्रते वायोर्.
१६२५ केनापि दौष्कु लेयेन
५७० । केशानळुश्चिषुः
९९९ कोट्या कोट्या पुर०
कोऽन्योऽकर्त्स्यदिह...
६३२ । कोपात्काश्चित्
 
३५८
 
...
 
400
 
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...
 
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श्लोकाङ्काः
 
८७८
 
१२०२
 
१२९३
 
१३२३
 
१३२२
 
१९८
 
४४४
 
९३४
 
४४१
 
४९५
 
१५१५
 
९८१
 
१३४
 
२६७
 
५५०
 
११८
 
१७३
 
११०९
 
२०९
 
४१२
 
९४०
 
७५०
 
११७३
 
१८१
 
९२
 
१३१९
 
१४८६
 
५५९
 
५२२
 
११८४
 
१०९७
 
१५८४