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३५
भल्लटशतकम्
not undertake the useless trouble (of making its fruit). What
would have been the use for the sandal tree of a fruit which
was not congruent to it ?
ग्रथित एष मिथ: कृतश्शृङ्खलैविषधरैरधिरुह्य महाजडः ।
मलयजः सुमनोभिरनाश्रितो यदत एव फलेन वियुज्यते ॥ ३१ ॥
महाजड : एष मलयजः मिथः कृतशृङ्खलैविषधरैः धिरुह्य ग्रथितः ।
यत् सुमनोभिः अनाश्रितः एव फलेन वियुज्यते ।
[ ग्रथित एव मिथः कृतः] विषधरैरधिरुह्येति । महाजडोऽतिशीतल
अत्यज्ञश्चान्यत्र । एष मलयजश्चन्दनतरुः । मिथोऽन्योन्यम् । कृताः शृङ्खला
येषां तैः । परस्परसंश्लिष्टैरित्यर्थः । विषधरैः स्वल्पैर्दुष्टजनैश्चाधिरुह्याधिष्ठाय
ग्रथितो बद्धः । सुमनोभिः पुष्पैरन्यत्र सुजनैश्च । यत् यस्मादनाश्रितः अतएव
फलेन न युज्यते न युक्तो भवति । असत्स्वीकारः सत्परित्यागश्च न श्रेयो हेतुरिति
भावः ।
साँपों
त्यन्त शीतल यह चन्दन आपस में इकट्ठे होकर जंजीर बने
के द्वारा (ऊपर) चढ़कर (जकड़कर) बाँध दिया गया है इसीलिए फल से वियुक्त
हो रहा है (इस पर फल नहीं लगे हैं)।
यहाँ जड शब्द के शीतल और मूर्ख दो अर्थ हैं । इसी प्रकार विषधर का
साँप तथा दुष्ट जन अर्थ है और सुमनस् शब्द के पुष्प एवं शुद्ध मन वाले सज्जन
अर्थ हैं । इस प्रकार जड और सुमनस् पद में पदश्लेष तथा विषधर पद में
र्थी व्यञ्जना है ।
यहाँ अप्रस्तुत वाच्य मलयजवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य दुष्टसंसर्गग्रस्त व्यक्ति-
विशेष की अभिव्यक्ति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा है । चन्दन में फलों का न होना
स्वाभाविक है किन्तु यहाँ विषधरों के लिपटने को इसमें हेतु माना है इस कारण
हेतु में हेतु की कल्पना करने से यहाँ हेतृत्प्रेक्षा है। सर्पों के संसर्ग से पेड़
विषाक्त हो गया है इसलिए उसमें फल नहीं लग रहे हैं।
This very cool sandal tree is tied with the poisoned snakes
making a chain together coiled around it and is not covered with
1. म', ह; एव अ, क
2. अ, क; न युज्यते म, ह
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
भल्लटशतकम्
not undertake the useless trouble (of making its fruit). What
would have been the use for the sandal tree of a fruit which
was not congruent to it ?
ग्रथित एष मिथ: कृतश्शृङ्खलैविषधरैरधिरुह्य महाजडः ।
मलयजः सुमनोभिरनाश्रितो यदत एव फलेन वियुज्यते ॥ ३१ ॥
महाजड : एष मलयजः मिथः कृतशृङ्खलैविषधरैः धिरुह्य ग्रथितः ।
यत् सुमनोभिः अनाश्रितः एव फलेन वियुज्यते ।
[ ग्रथित एव मिथः कृतः] विषधरैरधिरुह्येति । महाजडोऽतिशीतल
अत्यज्ञश्चान्यत्र । एष मलयजश्चन्दनतरुः । मिथोऽन्योन्यम् । कृताः शृङ्खला
येषां तैः । परस्परसंश्लिष्टैरित्यर्थः । विषधरैः स्वल्पैर्दुष्टजनैश्चाधिरुह्याधिष्ठाय
ग्रथितो बद्धः । सुमनोभिः पुष्पैरन्यत्र सुजनैश्च । यत् यस्मादनाश्रितः अतएव
फलेन न युज्यते न युक्तो भवति । असत्स्वीकारः सत्परित्यागश्च न श्रेयो हेतुरिति
भावः ।
साँपों
त्यन्त शीतल यह चन्दन आपस में इकट्ठे होकर जंजीर बने
के द्वारा (ऊपर) चढ़कर (जकड़कर) बाँध दिया गया है इसीलिए फल से वियुक्त
हो रहा है (इस पर फल नहीं लगे हैं)।
यहाँ जड शब्द के शीतल और मूर्ख दो अर्थ हैं । इसी प्रकार विषधर का
साँप तथा दुष्ट जन अर्थ है और सुमनस् शब्द के पुष्प एवं शुद्ध मन वाले सज्जन
अर्थ हैं । इस प्रकार जड और सुमनस् पद में पदश्लेष तथा विषधर पद में
र्थी व्यञ्जना है ।
यहाँ अप्रस्तुत वाच्य मलयजवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य दुष्टसंसर्गग्रस्त व्यक्ति-
विशेष की अभिव्यक्ति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा है । चन्दन में फलों का न होना
स्वाभाविक है किन्तु यहाँ विषधरों के लिपटने को इसमें हेतु माना है इस कारण
हेतु में हेतु की कल्पना करने से यहाँ हेतृत्प्रेक्षा है। सर्पों के संसर्ग से पेड़
विषाक्त हो गया है इसलिए उसमें फल नहीं लग रहे हैं।
This very cool sandal tree is tied with the poisoned snakes
making a chain together coiled around it and is not covered with
1. म', ह; एव अ, क
2. अ, क; न युज्यते म, ह
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri