This page has not been fully proofread.

भल्लटशतकम्
 
३१
 
यहाँ हृदयलघिमा के अभाव में लक्ष्मीपदप्राप्ति की कल्पना 'यदि' शब्द को
लेकर की गई है इसलिए यहाँ यद्यर्थिका अतिशयोक्ति है । अप्रस्तुत वाच्य
स्थलकमल के वर्णन से प्रस्तुत व्यङ्ग्य कुलीनत्वादिगुणसम्पन्न व्यक्ति की
प्रतीति होने से प्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार भी है ।
 
पक, जड शब्दों में शाब्दी व्यञ्जना है। पक शब्द से नीच और जड शब्द
से मूर्ख अर्थ की भी प्रतीति हो रही है । वक्ता श्रोता को बताना चाहता है कि
तुम्हारा नीच कुल में जन्म नहीं हुआ है और मूर्ख व्यक्तियों से भी तुम घिरे
नहीं रहते हो तथा तुम्हारा व्यक्तित्व भी तेजस्वी है किन्तु विधाता ने ग़लती
से तुम्हारा हृदय संकीर्ण बना दिया है अन्यथा तुम भी अपने सहयोगियों की
सहायता पाकर बहुत बड़े धनपति होते । ब्रह्मा ने तुम्हारा दिल छोटा बनाकर
तुम्हारे साथ अन्याय किया है ।
 
O rose ! Your birth is not from mud and you do not have
vice caused by the company of water (stupid people). Your
body is shining with the red shining lustre like that of a jewel.
Had not the Creater made your heart very small, you alone
would have become the abode of goddess Lakşmi.
 
उच्चैरुच्चरतु चिरं चिरी वर्त्मनि तरुं समारुह्य ।
दिग्व्यापिनि शब्दगुणे शङ्खः सम्भावनाभूमिः ॥२७॥
 
वर्त्मनि तरुं समारुह्य चिरी चिरम् उच्चैः उच्चरतु (परन्तु) दिग्व्या-
पिनि शब्दगुरणे शङ्ख (एव) सम्भावनाभूमिः ( भवति ) ।
 
-
 
मूर्खस्य बहु जल्पतो विदग्धस्य मृदुवचनमेव युक्तमित्याह - उच्चैरुच्चरत्विति ।
चिरी सल्लिका तरुं समारुह्योच्चश्चिरमुञ्चरतु । दिग्व्यापिनि लोकव्यापिनि
शब्दगुणे शङ्ख एव सम्भावनाया: इलाघाया भूमिः पदं भवति । अयमर्थः ।
तुङ्गमासनमारुह्य समुद्धतमतिचिरमुच्चरतोऽपि नीचस्य वाक्यं गुणहीनतया लोक-
ग्राह्यं न भवति । विदग्धालापो माधुर्यगुरणयोगेन प्रथत इति ।
 
रास्ते में (स्थित ) पेड़ पर चढ़ कर झींगुर देर तक ऊँचे-ऊँचे (भले ही)
चिल्लाता रहे परन्तु दिशाओं में व्याप्त होने वाले शब्द के गुण के विषय में शङ्ख
ही दर पाता है ।
 
1. अ; चीरी म; चीरि: ह; झिल्ली क
2. म; सिल्लिका ह
 
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri