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२८
भल्लटशतकम्
की ओर सङ्केत करके निषेधाभास की प्रतीति हो रही है, इस कारण यहाँ
आक्षेप अलङ्कार है। इन दोनों अलङ्कारों का एकत्र समावेश होने के कारण
यहाँ एकवचनानुप्रवेश सङ्कर है। 2
O camel ! you want to shriek with full force. How ear-rending
will it be? My only resort is your long zigzag neck. Your
speech, tired due to coming through the openings of your long
neck, will take long time and by that time, who knows what may
happen to whom and in which way? (Possibly you will die due
to your own neck-trouble.)
अन्तरिछद्रारिण भूयांसि कण्टका बहवो बहिः ।
कथं कमलनालस्य मा भूवन् भङ्गुरा गुरगाः ॥२४॥
अन्तःभूयांसि छिद्राणि बहिः (च) बहवः कण्टका: (सन्ति )
कमलनालस्य गुणाः भङ्गुराः कथं मा भूवन् ?
सर्वथाभ्यन्तरच्छिद्रबहुले नृशंसपरिवारे गुणा न तिष्ठन्तीत्याह--अन्तरिछ-
द्वारणीति । अभ्यन्तरे छिद्राणि रन्ध्राणि भूयांसि बहिः कण्टका बाधाकराः
बहवः । एवम्भूतस्य कमलनालस्य गुरणास्तन्तवः कथं भङ्गरा शिछदुरा मा भूवन् ।
मनसि बहुच्छिद्रस्य तत्तदसाधु चिन्तयतः बहिः कण्टकैः परिवृतस्य गुरगाः विन-
श्वराः चेति ।
भीतर बहुत से छेद हैं और बाहर बहुत काँटे हैं तो फिर कमलदण्ड के
तन्तु (क्षण भर में) टूटने वाले कैसे न हों ?
यहाँ किसी ऐसे शासक की ओर संकेत है जिसके अपने मंत्रिमण्डल में भी
फूट है तथा जिस पर बाहर से शत्रु आक्रमण करने को तैयार हैं। ऐसे शासक
के अपने गुरण भी नष्ट हो जाते हैं ।
प्रतीति
छिद्रों
यहाँ प्रप्रस्तुत वाच्य कमलनाल वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य नृशंसपरिवार की
होने से सादृश्यमूला अप्रस्तुतप्रशंसा है। गुणों की भङ्गुरता में अनेक
तथा बहुत से काँटों की हेतुता होने से काव्यलिङ्ग है। छिद्र
शब्द के छेद तथा दोष एवं कण्टक के काँटे तथा शत्रु ये दो अर्थ होने से यहाँ
श्लेष भी है ।
As this lotus-stalk has so many holes inside and so many
thorns out, how would its threads be not momentary ?
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
भल्लटशतकम्
की ओर सङ्केत करके निषेधाभास की प्रतीति हो रही है, इस कारण यहाँ
आक्षेप अलङ्कार है। इन दोनों अलङ्कारों का एकत्र समावेश होने के कारण
यहाँ एकवचनानुप्रवेश सङ्कर है। 2
O camel ! you want to shriek with full force. How ear-rending
will it be? My only resort is your long zigzag neck. Your
speech, tired due to coming through the openings of your long
neck, will take long time and by that time, who knows what may
happen to whom and in which way? (Possibly you will die due
to your own neck-trouble.)
अन्तरिछद्रारिण भूयांसि कण्टका बहवो बहिः ।
कथं कमलनालस्य मा भूवन् भङ्गुरा गुरगाः ॥२४॥
अन्तःभूयांसि छिद्राणि बहिः (च) बहवः कण्टका: (सन्ति )
कमलनालस्य गुणाः भङ्गुराः कथं मा भूवन् ?
सर्वथाभ्यन्तरच्छिद्रबहुले नृशंसपरिवारे गुणा न तिष्ठन्तीत्याह--अन्तरिछ-
द्वारणीति । अभ्यन्तरे छिद्राणि रन्ध्राणि भूयांसि बहिः कण्टका बाधाकराः
बहवः । एवम्भूतस्य कमलनालस्य गुरणास्तन्तवः कथं भङ्गरा शिछदुरा मा भूवन् ।
मनसि बहुच्छिद्रस्य तत्तदसाधु चिन्तयतः बहिः कण्टकैः परिवृतस्य गुरगाः विन-
श्वराः चेति ।
भीतर बहुत से छेद हैं और बाहर बहुत काँटे हैं तो फिर कमलदण्ड के
तन्तु (क्षण भर में) टूटने वाले कैसे न हों ?
यहाँ किसी ऐसे शासक की ओर संकेत है जिसके अपने मंत्रिमण्डल में भी
फूट है तथा जिस पर बाहर से शत्रु आक्रमण करने को तैयार हैं। ऐसे शासक
के अपने गुरण भी नष्ट हो जाते हैं ।
प्रतीति
छिद्रों
यहाँ प्रप्रस्तुत वाच्य कमलनाल वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य नृशंसपरिवार की
होने से सादृश्यमूला अप्रस्तुतप्रशंसा है। गुणों की भङ्गुरता में अनेक
तथा बहुत से काँटों की हेतुता होने से काव्यलिङ्ग है। छिद्र
शब्द के छेद तथा दोष एवं कण्टक के काँटे तथा शत्रु ये दो अर्थ होने से यहाँ
श्लेष भी है ।
As this lotus-stalk has so many holes inside and so many
thorns out, how would its threads be not momentary ?
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri