2023-02-27 22:42:32 by ambuda-bot
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भल्ल टेशत कम्
शुकालापश्रवणेन च मनो दुःखायते । तस्मान्मयूरशुकयोर्नवालभ्यं समुत्सारणीय
त्वमेव । काकस्तु तैदभिलषित प्रियलाभाभिसूचकं वदन् षड्रसं भुङ्क्ते ।
तस्मात् कालाविदामपि अनवसरज्ञानां न किञ्चित् फलं विद्यते । मायाविनामपि
चित्ताराधननिपुरणानामकार्यमेव कुर्वतां क्षुद्रान् मूर्खसमीपात् महत् फलं सम्भ-
वति । तस्मात् चित्तारावनमेव कृत्वा स्वार्थसम्पादननिपुणैरविशेषज्ञस्सेव्य इति ।
२६
चित्ताकर्षक नृत्य करते हुए ये मोर और सुनने योग्य अर्थात् कर्णानन्दजनक
पाठ पढ़ते हुए तोते (या तो ) दिखाई नहीं पड़ते हैं, अथवा (यदि कहीं दीख भी
जाते हैं तो) वे ही यहाँ (से) निश्चित रूप से क्रोधपूर्वक हटा ही दिये जाते हैं ।
अब तो प्रिय की प्राप्ति (के शुभ शकुन ) को बतलाने के कारण ( घर में ) प्रवेश
को प्राप्त करने वाले कपटी इस कौवे के द्वारा प्रवासी पति की स्त्री का यह घर
स्वच्छन्दता के साथ भोगा जा रहा है ।
यहाँ अप्रस्तुतवाच्य शिखिशुककाकवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य सज्जनदुर्जन-
वृत्तान्त की प्रतीति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार है । शिखिशुकसदृश
सज्जनों को सम्मान के स्थान पर अपमान की अनिष्टापत्ति होने से विषमा-
लङ्कार भी है।
Those dancing peacocks and those parrots reciting charming
lessons are seen no more. They are being warded off. For
indicating the procurement of the desired object, the clever crow,
after getting entrance, is enjoying freely in the house of the lady
whose husband has gone out.
करभ रभसात् क्रोष्टुं वाञ्छस्यहो श्रवरगज्वरः
शरणमथवानृज्वो दीर्घा तवैव शिरोधरा ।
पृथु गलविलावृत्तिश्रान्तो चरिष्यति वाक् चिरा
5
3.
दियति, समये को जानीते भविष्यति कस्य किम् ॥ २३ ॥
1.
2. ह, म; तथैव अ, क
अ; बहु क, ह; कृत म
अ, क, ह; कान्तो म
अ, ह; मुखाद् क, म
4
क, म', ह, श्रवणज्वरम् ग्र
5.
6. अ, क; करिष्यति म), ह
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
शुकालापश्रवणेन च मनो दुःखायते । तस्मान्मयूरशुकयोर्नवालभ्यं समुत्सारणीय
त्वमेव । काकस्तु तैदभिलषित प्रियलाभाभिसूचकं वदन् षड्रसं भुङ्क्ते ।
तस्मात् कालाविदामपि अनवसरज्ञानां न किञ्चित् फलं विद्यते । मायाविनामपि
चित्ताराधननिपुरणानामकार्यमेव कुर्वतां क्षुद्रान् मूर्खसमीपात् महत् फलं सम्भ-
वति । तस्मात् चित्तारावनमेव कृत्वा स्वार्थसम्पादननिपुणैरविशेषज्ञस्सेव्य इति ।
२६
चित्ताकर्षक नृत्य करते हुए ये मोर और सुनने योग्य अर्थात् कर्णानन्दजनक
पाठ पढ़ते हुए तोते (या तो ) दिखाई नहीं पड़ते हैं, अथवा (यदि कहीं दीख भी
जाते हैं तो) वे ही यहाँ (से) निश्चित रूप से क्रोधपूर्वक हटा ही दिये जाते हैं ।
अब तो प्रिय की प्राप्ति (के शुभ शकुन ) को बतलाने के कारण ( घर में ) प्रवेश
को प्राप्त करने वाले कपटी इस कौवे के द्वारा प्रवासी पति की स्त्री का यह घर
स्वच्छन्दता के साथ भोगा जा रहा है ।
यहाँ अप्रस्तुतवाच्य शिखिशुककाकवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य सज्जनदुर्जन-
वृत्तान्त की प्रतीति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार है । शिखिशुकसदृश
सज्जनों को सम्मान के स्थान पर अपमान की अनिष्टापत्ति होने से विषमा-
लङ्कार भी है।
Those dancing peacocks and those parrots reciting charming
lessons are seen no more. They are being warded off. For
indicating the procurement of the desired object, the clever crow,
after getting entrance, is enjoying freely in the house of the lady
whose husband has gone out.
करभ रभसात् क्रोष्टुं वाञ्छस्यहो श्रवरगज्वरः
शरणमथवानृज्वो दीर्घा तवैव शिरोधरा ।
पृथु गलविलावृत्तिश्रान्तो चरिष्यति वाक् चिरा
5
3.
दियति, समये को जानीते भविष्यति कस्य किम् ॥ २३ ॥
1.
2. ह, म; तथैव अ, क
अ; बहु क, ह; कृत म
अ, क, ह; कान्तो म
अ, ह; मुखाद् क, म
4
क, म', ह, श्रवणज्वरम् ग्र
5.
6. अ, क; करिष्यति म), ह
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