2023-02-27 22:42:30 by ambuda-bot
This page has not been fully proofread.
भल्ल टशतकम्
२१
से कुछ न मांगे)। यदि यह (सिर झुकाकर अपना स्वाभिमान छोड़कर लेना)
चाहे तो फैली हुई दिशाओं में निर्मल, शीतल और मीठे वे जल भला इसके
लिए कहाँ नहीं होंगे ? ( अर्थात् सब जगह मिलेंगे ) ।
अभिप्राय यह है कि यदि मनस्वी व्यक्ति अपना स्वाभिमान छोड़कर भुक
जाता है तो पेट भरने के लिए उसको आजीविका कहीं भी मिल जाती है ।
परन्तु ऐसा करने से उसकी अवनति ही होती है । इसलिए ऐसा मनस्वी व्यक्ति
अपना स्वाभिमान नहीं छोड़ता है भले ही उसे मृत्यु का वरण क्यों न करना
पड़ जाय । सिर से ही याचना करने का अभिप्राय यह है कि किसी से याचना
करते समय अपने स्वाभिमान का ध्यान रखना चाहिए ।
यहाँ प्रस्तुत चातकशिशुवृत्तान्त से प्रस्तुत मनस्विवृत्तान्त की प्रतीति
होने से सादृश्यनिबन्धना अप्रस्तुतप्रशंसा है ।
The young one of a câtaka bird should beg everything from
its own high head. For, if it (would have become low and)
desires the clear, cool and sweet waters would have been avail-
able for it in all the directions.
सोऽपूर्वो
रसनाविपर्ययविधिस्तत्कयोश्चापलं
दृष्टिः सा मदविस्मृतस्वपरदिक् कि भूयसोक्तेन वा ।
इत्थं निश्चितवानसि भ्रमर हे यद्वारगोऽद्याप्यसा-
वन्तः शून्यकरो निषेव्यत इति भ्रातः क एष ग्रहः ॥ १६ ॥
सः पूर्व: रसनाविपर्ययविधिः, कर्णयोः तत् चापलं, मदविस्मृतस्व-
पर दिक् सा दृष्टि: । भूयसा उक्तेन वा किम् ? हे भ्रमर ! ( एवं विधोऽपि
जन्तु: सेव्य:) इत्थं (किमर्थं ) निश्चितवानसि ? भ्रातः, यत् अन्तः
शून्यकरः असौ वारण: अद्यापि निषेव्यते इति क एष ग्रहः ?
-
अनुचितविवादी दोषश्रावी दोषवशादविज्ञातशत्रु मित्रभेदो विरक्तः कदर्यदच
प्रभुर्न सेव्य इत्याह – सोऽपूर्व इति । पूर्वी रसनाविपर्ययविधिः स एव मन
एवासाधारणतालुविपरिवृत्तिविधिः । तथाविध एव कर्णयोरपि चापलं तथाविधं
मदविस्मृतस्वपरदृक् दृष्टिः सा मदावेशेनानवगतनिजपरजनविभागा बुद्धिः सा
तथाविधा । निजा कुवलयासादिप्रदा । परे प्रसिद्धाः । भूयसा: बहुनोक्तेन कि
1. ह, क, अ; एवं म म
!
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
२१
से कुछ न मांगे)। यदि यह (सिर झुकाकर अपना स्वाभिमान छोड़कर लेना)
चाहे तो फैली हुई दिशाओं में निर्मल, शीतल और मीठे वे जल भला इसके
लिए कहाँ नहीं होंगे ? ( अर्थात् सब जगह मिलेंगे ) ।
अभिप्राय यह है कि यदि मनस्वी व्यक्ति अपना स्वाभिमान छोड़कर भुक
जाता है तो पेट भरने के लिए उसको आजीविका कहीं भी मिल जाती है ।
परन्तु ऐसा करने से उसकी अवनति ही होती है । इसलिए ऐसा मनस्वी व्यक्ति
अपना स्वाभिमान नहीं छोड़ता है भले ही उसे मृत्यु का वरण क्यों न करना
पड़ जाय । सिर से ही याचना करने का अभिप्राय यह है कि किसी से याचना
करते समय अपने स्वाभिमान का ध्यान रखना चाहिए ।
यहाँ प्रस्तुत चातकशिशुवृत्तान्त से प्रस्तुत मनस्विवृत्तान्त की प्रतीति
होने से सादृश्यनिबन्धना अप्रस्तुतप्रशंसा है ।
The young one of a câtaka bird should beg everything from
its own high head. For, if it (would have become low and)
desires the clear, cool and sweet waters would have been avail-
able for it in all the directions.
सोऽपूर्वो
रसनाविपर्ययविधिस्तत्कयोश्चापलं
दृष्टिः सा मदविस्मृतस्वपरदिक् कि भूयसोक्तेन वा ।
इत्थं निश्चितवानसि भ्रमर हे यद्वारगोऽद्याप्यसा-
वन्तः शून्यकरो निषेव्यत इति भ्रातः क एष ग्रहः ॥ १६ ॥
सः पूर्व: रसनाविपर्ययविधिः, कर्णयोः तत् चापलं, मदविस्मृतस्व-
पर दिक् सा दृष्टि: । भूयसा उक्तेन वा किम् ? हे भ्रमर ! ( एवं विधोऽपि
जन्तु: सेव्य:) इत्थं (किमर्थं ) निश्चितवानसि ? भ्रातः, यत् अन्तः
शून्यकरः असौ वारण: अद्यापि निषेव्यते इति क एष ग्रहः ?
-
अनुचितविवादी दोषश्रावी दोषवशादविज्ञातशत्रु मित्रभेदो विरक्तः कदर्यदच
प्रभुर्न सेव्य इत्याह – सोऽपूर्व इति । पूर्वी रसनाविपर्ययविधिः स एव मन
एवासाधारणतालुविपरिवृत्तिविधिः । तथाविध एव कर्णयोरपि चापलं तथाविधं
मदविस्मृतस्वपरदृक् दृष्टिः सा मदावेशेनानवगतनिजपरजनविभागा बुद्धिः सा
तथाविधा । निजा कुवलयासादिप्रदा । परे प्रसिद्धाः । भूयसा: बहुनोक्तेन कि
1. ह, क, अ; एवं म म
!
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri