This page has not been fully proofread.

7
 
M
 
भल्लटशतकम्
 
૧૨
 
और (वास्तविक गुणों के न होने पर भी) अपने ऊपर गुणों का आरोप करने
वाले, हीन (छोटे और मूर्ख) व्यक्तियों को (ही)कर्षित करने वाले उस
(ज्ञानलवदुर्विदग्ध ढोंगी) थोड़े तेज वाले असत्पुरुष का कल्याण न हो । क्योंकि
( थोड़ी सी) दीप्ति के सम्पर्क मात्र से प्रकाशमान इस खद्योत नाम के कीड़े से
उत्पन्न चलती फिरती मणि की भ्रान्ति से हम लज्जित एवं अपमानित हुए हैं }
 
यहाँ प्रस्तुतवाच्य मरिगकीटवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य विद्वन्मवृत्तान्त
की प्रतीति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार है । साथ ही पहले मूर्ख में पण्डित
होने का सन्देह है और बाद में उसके मूर्ख ही होने का निश्चय हो गया है ।
इस प्रकार इस श्लोक में प्रस्तुतप्रशंसा और निश्चयान्त सन्देह का एकाश्रयानु-
प्रवेश सङ्कर है ।
 
Damn with that dim light (or little knowledge of a foolish
man) which shines by itself, is mean due to the superimposition
of qualities which it does not possess, the light which deludes
the cowards. We have been deceived by this reddish shining thing
called glow-worm which we mistook for a jewel.
 
दन्तान्त कुन्त मुख सन्ततपातघात-
सन्ताडितोन्न'तगिरिर्गज एव वेत्ति ।
पञ्चास्यपारिपपिचरपातपीडां
 
न क्रोष्टुकःश्वशिशुहुकृतिनष्टचेष्टः ॥१७॥
 
दन्तान्तकुन्तमुखसन्ततपात घातसन्ताडितोन्नतगिरिः गज एव
पञ्चास्य पारिणपविपञ्जरपातपीडां वेत्ति, श्वशिशुहुङ्कृतिनष्टचेष्ट:
क्रोष्टुक: न (जानाति) ।
 
धीरं धीर एव वेत्ति न मूर्ख इत्याह – दन्तान्तकुन्तमुखेति । दन्तान्तो
दन्ताग्रं तदेव कुन्तमुखं प्रासानं तस्य सन्ततपातेनाविच्छिन्नसन्तानेन घातेन
हननेन सन्ताडितो अभिहत उन्नतो गिरियन स एव गजः पञ्चास्यस्य सिंहस्य
पारिणरेव पविः कुलिशं तस्य पञ्जरं समूहम् । तत्पातेन जनितां पीडां वेत्ति ।
श्वशिशुः सारमेयपोतस्तस्य हुकृत्या नष्टचेष्टः किंकर्तव्यविमूढः क्रोष्टा शृगालो न
वेत्तीति ।
 
1. ह्, म क; सन्ता पितो म अ
 
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri