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भल्लटशतकम्
 
१७
 
यहाँ खद्योत पद का अपने प्रसिद्ध जुगनू अर्थ में अपह्नव करके सूर्य-
चन्द्रादि में इस पद के अर्थं की स्थापना होने से यहाँ पाहुति है।
अप्रस्तुत वाच्य सूर्यचन्द्रखद्योतवृत्तान्त से प्रस्तुत उत्तममध्यमाघमपुरुष वृत्तान्त
की प्रतीति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार भी है। दोनों अलङ्कारों का एक
ही स्थान पर प्रवेश होने से यहाँ एकाश्रयानुप्रवेश सङ्कर है ।
 
Some satiated partial person has named the small insect
(glow-worm) as khadyota, i.e. 'sky-illuminator. This epithet be-
fits the sun alone and does not suit any other except the moon.
 
कीटमणे दिनमधुना तरणिकरान्तरितचारुसितकिररणम् ।
घनसन्तमसमलीमसदश दिशि निशि यद्विराजसि तदन्यत् ॥ १५॥
 
कीटमरणे ! तदन्यत् यत् घनसन्तमसमलीमसदशदिशि निशि विरा-
जसि । अघुना तरणिकरान्तरितचारुसितकिरणं दिनम् (अस्ति) ।
 
कापुरुषारणामुत्तमसन्निघौ न प्रादुर्भावः । तदसन्निघावेव समुन्मेष इत्याह -
कीटमणे इति । कीटमणे खद्योत। घनसन्तमसमलीमसदशदिशि निरन्तरान्ध-
कारमलिनितदशदिशां मुखे निशि प्रदोषे विराजसि । यत् तदन्यत् तत् ते गुरगो-
पचयकारणं न भवति । विचार्यमाणे क्षुद्रत्वप्रकाशकमेव । यस्मादन्धकारसन्निधौ
समुन्मेषो न तेजस्सन्निधौ । तस्मादधुना तरणिकरान्तरितसितकिरणं सूर्य-
मरीचितिरस्कृतचन्द्रं दिनं जातम् । तस्मात् त्वया रात्राविवोन्मिषितुं न
शक्यमिति ।
 
अरे जुगनू ! वह बात और है जो तुम गहरे अन्धकार से अँधेरी हुई दशों
दिशाओं वाली रात में चमक लेते हो। अब तो सूर्य की किरणों से सुन्दर चन्द्रमा
को छिपा देने वाला दिन है। (अब यहाँ तुम्हारी दाल नहीं गलेगी) ।
 
यहाँ र्, द्, क्, म् और श् इन वर्गों की अनेक बार आवृत्ति होने से
वृत्त्यनुप्रास अलंकार है । अप्रस्तुत वाच्य सूर्यकोटमरिणवृत्तान्त से प्रस्तुत
उत्तमाघमपुरुषवृत्तान्त की प्रतीति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा है ।
 
O glow-worm ! it was something else that you shone in the
night in which all the ten directions were pitch dark. Now you
 
अ, म , ह; तरणिकरस्य गित सित किरणम् क
 
1.
 
2. संशोधित; घनसन्तमसेति म, ह
 
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