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भल्लटशतकम्
 
मध्यमाघमपुरुष वृतान्त की प्रतीति होने से ( सम से सम की प्रतीति रूप)
अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार है।
 
There is nothing more untrue and improper than the remark
that the moon will remove the pangs of separation caused to the
three worlds by the setting of the sun. But it is more distressing
to know that now these small earthen lamps have decided to
destroy the darkness.
 
सूर्यादन्यत्र यच्चन्द्रे ऽप्यर्थासंस्पशि तत्कृतम् ।
खद्योत इति कीटस्य नाम तुष्टेन केनचित् ॥ १४ ॥
 
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केनचित् तुष्टेन (जनेन खद्योताभिघस्य) कीटस्य खद्योत इति तत्
नाम् कृतं यत् सूर्यादन्यत्र चन्द्रेऽप्यर्थासंस्पशि ( विद्यते ) ।
 
गुणदोषववेचनशक्ति रहितोऽयं पक्षपातेन यं कन्चिदवशमनवद्यगुणं मत्वा
तदुचितेन संस्कारेण संस्करोति । तं प्रत्याह – सूर्यादन्यत्रेति । खम् प्रकाशं
प्रकाशयतीति खद्योतः सूर्य एव । तस्मात्सूर्यादन्यत्र यच्चन्द्रेऽप्यथ संस्पशि
खद्योतताभावादसंगातार्थं तत् खद्योत इति नाम । तुष्टेन पक्षपातिना केनापि
कस्यापि कीटस्य कृमेज्र्ज्योतिरिङ्गणाख्यस्य कृतं न गुणापेक्षया केवलं पक्षपात-
मात्रेण कृतमिति ।
 
किसी पक्षपाती (चाटुकार पुरुष ने खद्योत नाम के) एक कीड़े का खद्योत
(आकाश को चमकाने वाला) इस रूप में वह नाम रख दिया है जो (ऊँचा नाम
तो) सूर्य को छोड़कर अन्य किसी में (यहाँ तक कि) चन्द्रमा में भी अपने अर्थ
को नहीं छूता (है) (अर्थात् खद्योतका व्युत्पत्तिजन्य अर्थ तो चन्द्र पर भी नहीं
लागू होता है)।
 
खम् जाकाशं द्योतते प्रकाशयति इति खद्योतः—- यह व्युत्पत्ति केवल सूर्य पर
ही घटती है । चन्द्र शब्द की व्युत्पत्ति 'चन्द्रयति प्रह्लादयति इति चन्द्रः इस रूप
में ही सम्भव है । इस कारण खद्योत का व्युत्पत्ति निमित्तक अर्थ केवल सूर्य
पर ही घट सकता है चन्द्रमा पर नहीं । चन्द्रमा केवल रात को ही आकाश को
चमका सकता है दिन में नहीं।
 
1. ह, म1, क; चन्द्राय अ
 
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