This page has not been fully proofread.

भल्लटशतकम्
 
१५
 
वृत्तान्त की प्रतीति ( सादृश्य के आधार पर) हो रही है । अतः यहाँ प्रस्तुत -
प्रशंसा अलङ्कार है ।
 
When the lustre of the sun occupies the sky, then the moon
and the other stars, though existing, do not appear to be so.
When counted from the opposite direction or order, they become
first in that rank. But do they feel ashamed of it ?
 
गते तस्मिन् भानौ त्रिभुवनसमुन्मेषविरह-
1
 
व्यथां चन्द्रो नेष्यत्यनुचितमतो नास्त्यसदृशम् ।
इदं चेतस्तापं जनयतितरामत्र यदमी
 
प्रदीपा: संजातास्तिमिरहतिबद्धोधुरशिखाः ॥१३॥
 
तस्मिन् भानौ गते त्रिभुवनसमुन्मेष विरहव्यथां चन्द्रो नेष्यति अतः
अनुचितम् असशं नास्ति । इदं चेतस्तापं जनयतितरां यत् अत्र अमी
प्रदीपा: तिमिरहतिबद्धोधुरशिखाः सञ्जाताः ॥
 
उत्तमकल्पेना प्यपनेतु
मशक्यामुत्तमविरहृव्यथा मत्यन्तमघमोऽपनेतुं कथं शव-
नोतीत्याह — गते तस्मिन्निति । तस्मिन् तथाविधमहाप्रभावे भानौ गते अस्तमिते
त्रिभुवनस्य समुन्मेष: प्रादुर्भावः । तद्विरहेणाभावेन जातां पीडां चन्द्रो नेष्यतीति
यदतः परं सर्वेषामनुचितमसाम्प्रतं नास्ति । तथापीदं वक्ष्यमाणं चेतस्तापं जन-
यतितराम् । किमिति चेत् अत्र त्रिभुवने प्रदीपास्तिमिरहतिबद्धोपुरशिखा
जाताः । तमोनिरसनहेतोर्जनितोद्धतज्वालास्सम्भूता इति चेत् इदं चेतस्तापं
जनयति ।
 
उस सूर्य के ग्रस्त हो जाने पर तीनों लोकों की उत्पन्न हुई विरहपीडा को
चन्द्रमा दूर कर देगा - इस कथन से बढ़कर अनुचित और गलत बात कोई नहीं
परन्तु इस सम्बन्ध में यह बात तो मन को और भी पीड़ित करती है कि अब
यहाँ ये छोटे-छोटे दीपक ही अन्धकार को दूर करने के लिए अपनी बड़ी मोटी
चोटी बाँध रहे हैं (उद्यत हो रहे हैं)।
 
यहाँ अप्रस्तुत वाच्य भानुचन्द्रप्रदीप वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य उत्तम-
1. अ, क; नास्ति सदृशम् म ह
 
2. अ, क, ह; बद्धोद्धत...... .म]
 
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri