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भल्लटशतकम्
भानोर्भासा नभसि आवृते (सति ) शीतमयूख मुख्या: (अन्ये ग्रहाः नक्ष-
त्रारिण च) सन्तः अपि असन्त इव प्रतिभान्ति । पङ्क्तौ चेत् (ते) विशन्तु
(र्ताह) प्रतिलोमवृत्त्या पूर्वे भवेयुः । अथवा इयताऽपि ते ( किं ) त्रपेरन् ?
१४
अघमानाना मत्यन्तसम्भावितानामपि न कदाचिदुत्तमप्रकृतिता भवतीत्याह
- पङ्क्ती विशन्त्विति । भानोर्भासावृते परिवीते नभसि शीतमयूखमुख्याश्चन्द्राद्या
अन्ये नक्षत्रताराग्रहाः सन्तोपि भवन्तोपि असन्त इव प्रतिभान्ति प्रकाशन्ते चेत्
ते पङ्क्तौ सूर्यादिभिरघिष्ठतायां वीथ्यां विशन्तु । अन्तर्गता भवन्तु । प्रतिलोम-
वृत्त्या प्रतीपवृत्त्या केतुराहुमन्दादिस्वरूपया गणिताः संख्याताः पूर्व पुरःस्था
भवेयुः । श्रथवा तथापि इयत्तावन्मात्रेणापि कि त्रपेरन् लज्जाभिभूताः कि
भवन्ति ? किमिति अध्याहार्यम् । सर्वथा न लञ्जिता भवेयुरिति । सन्त इति न
चित्राणि सूच्यन्ते । अयमर्थः । उत्तमसंनिघावधमा जीवन्मृता एव तथा निस्त्र-
पतया सद्भिः सहैव पङ्क्तावृपविशन्ति । यो योऽघमस्तं तमा रम्य गणिताः पुरस्था
भवन्ति । एतावन्मात्रमपि सम्भावनां मन्वाना न लज्जिताः कथं भवेयुरिति ॥
होते
सूर्य के तेज से आकाश के व्याप्त हो जाने पर चन्द्रादि ( दूसरे दूसरे नक्षत्र)
हुए भी न होते हुओं की तरह प्रकाशित होते हैं ( अथवा प्रतीत होते हैं ) ।
परन्तु यदि वे ( सूर्यादि बड़े ग्रहों की) श्रेणी में प्रवेश पा लेवें तो उल्टे क्रम से
(केतु, राहु, शनैश्चर, मङ्गल, चन्द्रादि, रूप में) गिने हुए वे अगले-अगले हो
जाते हैं फिर भी (क्या) वे इतने मात्र से (अर्थात् पिछड़े होने पर आगे आगे
गिने जाने पर) लज्जित होते हैं १ (बिल्कुल भी वे शर्मिन्दा नहीं होते ) ।
महाकवि भल्लट ने यहां यह बतलाया है कि सूर्य की उपस्थिति में अर्थात्
दिन में तो चन्द्रादि नक्षत्र चमकते ही नहीं हैं, रात में भी यदि चन्द्र प्रकाशित
होता है तो सूर्य के ही प्रकाश से चमकता है। किन्तु सूर्य के साथ ही चन्द्र, राहु,
केतु और शनैश्चरादि नक्षत्रों की चमकने वालों में गणना होती है और इनको
भी महत्त्वपूर्ण मान लिया जाता है। यदि कहीं उल्टे क्रम से नक्षत्रों की गणना
होती है अर्थात् छोटे राहु, केतु आदि नक्षत्रों का नाम पहले तथा सूर्य का नाम
बाद में लिया जाता है तो ये नक्षत्र अपने को ऊँचा समझते हैं। इसी प्रकार
उत्तम कोटि के पण्डितों की उपस्थिति में मूर्ख पण्डितों का कोई प्रभाव नहीं
पड़ता है परन्तु उनको भी जब अन्य प्रकाण्ड पण्डितों के साथ सम्मान दिया
जाता है तो वे अपने आपको सचमुच का पण्डित मानकर अभिमानी बन जाते
हैं। सम्मान पाकर वे लज्जित न होकर गौरवान्वित होते हैं ।
यहां अप्रस्तुत वाच्य सूर्यचन्द्रवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य उत्तमाधमपुरुष-
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
A
भल्लटशतकम्
भानोर्भासा नभसि आवृते (सति ) शीतमयूख मुख्या: (अन्ये ग्रहाः नक्ष-
त्रारिण च) सन्तः अपि असन्त इव प्रतिभान्ति । पङ्क्तौ चेत् (ते) विशन्तु
(र्ताह) प्रतिलोमवृत्त्या पूर्वे भवेयुः । अथवा इयताऽपि ते ( किं ) त्रपेरन् ?
१४
अघमानाना मत्यन्तसम्भावितानामपि न कदाचिदुत्तमप्रकृतिता भवतीत्याह
- पङ्क्ती विशन्त्विति । भानोर्भासावृते परिवीते नभसि शीतमयूखमुख्याश्चन्द्राद्या
अन्ये नक्षत्रताराग्रहाः सन्तोपि भवन्तोपि असन्त इव प्रतिभान्ति प्रकाशन्ते चेत्
ते पङ्क्तौ सूर्यादिभिरघिष्ठतायां वीथ्यां विशन्तु । अन्तर्गता भवन्तु । प्रतिलोम-
वृत्त्या प्रतीपवृत्त्या केतुराहुमन्दादिस्वरूपया गणिताः संख्याताः पूर्व पुरःस्था
भवेयुः । श्रथवा तथापि इयत्तावन्मात्रेणापि कि त्रपेरन् लज्जाभिभूताः कि
भवन्ति ? किमिति अध्याहार्यम् । सर्वथा न लञ्जिता भवेयुरिति । सन्त इति न
चित्राणि सूच्यन्ते । अयमर्थः । उत्तमसंनिघावधमा जीवन्मृता एव तथा निस्त्र-
पतया सद्भिः सहैव पङ्क्तावृपविशन्ति । यो योऽघमस्तं तमा रम्य गणिताः पुरस्था
भवन्ति । एतावन्मात्रमपि सम्भावनां मन्वाना न लज्जिताः कथं भवेयुरिति ॥
होते
सूर्य के तेज से आकाश के व्याप्त हो जाने पर चन्द्रादि ( दूसरे दूसरे नक्षत्र)
हुए भी न होते हुओं की तरह प्रकाशित होते हैं ( अथवा प्रतीत होते हैं ) ।
परन्तु यदि वे ( सूर्यादि बड़े ग्रहों की) श्रेणी में प्रवेश पा लेवें तो उल्टे क्रम से
(केतु, राहु, शनैश्चर, मङ्गल, चन्द्रादि, रूप में) गिने हुए वे अगले-अगले हो
जाते हैं फिर भी (क्या) वे इतने मात्र से (अर्थात् पिछड़े होने पर आगे आगे
गिने जाने पर) लज्जित होते हैं १ (बिल्कुल भी वे शर्मिन्दा नहीं होते ) ।
महाकवि भल्लट ने यहां यह बतलाया है कि सूर्य की उपस्थिति में अर्थात्
दिन में तो चन्द्रादि नक्षत्र चमकते ही नहीं हैं, रात में भी यदि चन्द्र प्रकाशित
होता है तो सूर्य के ही प्रकाश से चमकता है। किन्तु सूर्य के साथ ही चन्द्र, राहु,
केतु और शनैश्चरादि नक्षत्रों की चमकने वालों में गणना होती है और इनको
भी महत्त्वपूर्ण मान लिया जाता है। यदि कहीं उल्टे क्रम से नक्षत्रों की गणना
होती है अर्थात् छोटे राहु, केतु आदि नक्षत्रों का नाम पहले तथा सूर्य का नाम
बाद में लिया जाता है तो ये नक्षत्र अपने को ऊँचा समझते हैं। इसी प्रकार
उत्तम कोटि के पण्डितों की उपस्थिति में मूर्ख पण्डितों का कोई प्रभाव नहीं
पड़ता है परन्तु उनको भी जब अन्य प्रकाण्ड पण्डितों के साथ सम्मान दिया
जाता है तो वे अपने आपको सचमुच का पण्डित मानकर अभिमानी बन जाते
हैं। सम्मान पाकर वे लज्जित न होकर गौरवान्वित होते हैं ।
यहां अप्रस्तुत वाच्य सूर्यचन्द्रवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य उत्तमाधमपुरुष-
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
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