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1
I
१२
भल्लटर्शत कम्
सद्वृत्तयः सद्व्यापाराः। सदसदर्थविवेकिनः सदिदमसदिदमिति ये विवेक्तुं
शक्नुवन्ति ते कीदृशं कीदृग्भूतममुमादित्यं समुदाहरन्ति स्तुवन्ति । तत्पश्य
विमृश । चोरासतीप्रभृतयो यदस्य ब्रुवते तन्न ग्राह्यमिति ।
जो लोग श्रेष्ठ आचरण करते हैं तथा अच्छे बुरे का विवेक रखते हैं वे
इस (सूर्य) के विषय में क्या कहते हैं यह देखो। चोर तथा दुष्टा स्त्रियाँ इसके
बारे में जो कहती हैं वह मानने पर तो सूर्य कहीं का नहीं रहेगा ।
भाव यह है कि किसी उच्चात्मा के विषय में ठीक ठीक जानने के लिए
विद्वान् सज्जनों की राय को महत्त्व देना चाहिए, स्वार्थी दुष्टों की राय को
नहीं । चोर और दुष्ट स्त्रियाँ तो अपने दुष्कृत्यों में बाधक होने के कारण सूर्य
की निन्दा करते हैं ।
यहाँ प्रस्तुत वाच्य सूर्यवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य सज्जन प्रशंसा की
प्रतीति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार है ।
One should take into consideration what the good people
capable of distinguishing between good and bad say about the
sun. Behold! if you accept what thieves and bad women say
about it then is the sun to be condemned for that ?
पातः पूष्णो भवति महते नोपतापाय यस्मात्
काले प्राप्ते क इह'न ययुर्यान्ति यास्यन्ति वान्तम् ।
एतावत्तु व्यथयतितरां लोकबाह्यैस्तमोभि-
स्तस्मिन्नेव प्रकृतिमहति व्योम्नि लब्धोऽवकाशः ॥ ११॥
पूष्णः पात: महते उपतापाय न भवति यस्मात् इह काले प्राप्ते के
अस्तं न यथुः (न) यान्ति ( न च यास्यन्ति । किन्तु ) एतावत् तु
(अस्मान्) व्यथयतितराम् (यत्) लोकबाह्यैः तमोभिः तस्मिन् एव प्रकृति-
महति व्योम्नि अवकाशः लब्धः (यस्मिन् पूर्व सूर्यः स्थिरः आसीत् ) ।
1. ह्, अ, क; अन्तः म1
2. ह, बरै, क; भवतु अ
3.
4.
5.
ह, म, अ; काले नास्तम् क
क; इव ह मरे, अ
म1, चास्तम् ह्, ध; चान्ये क
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
--T
4
ने
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१२
भल्लटर्शत कम्
सद्वृत्तयः सद्व्यापाराः। सदसदर्थविवेकिनः सदिदमसदिदमिति ये विवेक्तुं
शक्नुवन्ति ते कीदृशं कीदृग्भूतममुमादित्यं समुदाहरन्ति स्तुवन्ति । तत्पश्य
विमृश । चोरासतीप्रभृतयो यदस्य ब्रुवते तन्न ग्राह्यमिति ।
जो लोग श्रेष्ठ आचरण करते हैं तथा अच्छे बुरे का विवेक रखते हैं वे
इस (सूर्य) के विषय में क्या कहते हैं यह देखो। चोर तथा दुष्टा स्त्रियाँ इसके
बारे में जो कहती हैं वह मानने पर तो सूर्य कहीं का नहीं रहेगा ।
भाव यह है कि किसी उच्चात्मा के विषय में ठीक ठीक जानने के लिए
विद्वान् सज्जनों की राय को महत्त्व देना चाहिए, स्वार्थी दुष्टों की राय को
नहीं । चोर और दुष्ट स्त्रियाँ तो अपने दुष्कृत्यों में बाधक होने के कारण सूर्य
की निन्दा करते हैं ।
यहाँ प्रस्तुत वाच्य सूर्यवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य सज्जन प्रशंसा की
प्रतीति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार है ।
One should take into consideration what the good people
capable of distinguishing between good and bad say about the
sun. Behold! if you accept what thieves and bad women say
about it then is the sun to be condemned for that ?
पातः पूष्णो भवति महते नोपतापाय यस्मात्
काले प्राप्ते क इह'न ययुर्यान्ति यास्यन्ति वान्तम् ।
एतावत्तु व्यथयतितरां लोकबाह्यैस्तमोभि-
स्तस्मिन्नेव प्रकृतिमहति व्योम्नि लब्धोऽवकाशः ॥ ११॥
पूष्णः पात: महते उपतापाय न भवति यस्मात् इह काले प्राप्ते के
अस्तं न यथुः (न) यान्ति ( न च यास्यन्ति । किन्तु ) एतावत् तु
(अस्मान्) व्यथयतितराम् (यत्) लोकबाह्यैः तमोभिः तस्मिन् एव प्रकृति-
महति व्योम्नि अवकाशः लब्धः (यस्मिन् पूर्व सूर्यः स्थिरः आसीत् ) ।
1. ह्, अ, क; अन्तः म1
2. ह, बरै, क; भवतु अ
3.
4.
5.
ह, म, अ; काले नास्तम् क
क; इव ह मरे, अ
म1, चास्तम् ह्, ध; चान्ये क
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
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