2023-02-27 22:42:26 by ambuda-bot
This page has not been fully proofread.
i
१०
सति धैर्ये गाम्भीर्ये करो व्याधूय व्यसनातिशयेन हस्तविघूननं कृत्वा गते
सति सर्वानेतानवज्ञाय त्वामेवानुगच्छताऽनुवघ्नतानुसरताऽमुना जनेन फलमिय-
देतावन्मात्रमेव प्राप्तं लब्धं पूर्वं यः पदा न स्पृष्टः यः पदेनापि न स्पृष्टः कुत्सा
जायते स एव चरणौ स्प्रष्टुं न सम्मन्यते स स्वचरणयोर्मया स्प्रष्टुं समीपतया
नानुमति करोति किचिद्विगर्हयत्येवेति ।
:
जब (मेरे) स्वाभिमान ने स्वीकार नहीं किया, शान्त भाव ने मना किया,
( मेरी स्थिति पर ) जब लज्जा (लज्जित होकर) भूमि कुरेदने लगी, जब (मेरी)
स्वाधीनता ने मुख मोड़ लिया और जब हाथ पटक पटक कर (मेरा) धैर्य चला
गया तब हे तृष्णे ! तुम्हारा अनुगमन करने पर मुझे यही फल मिला है कि
जिस (पुरुष) को मैं पैरों से भी नहीं छूता था वह अब चरण छूने की अनुमति
भी नहीं देता। (अर्थात् जिस को निकृष्ट समझ कर मैं पैरों से भी नहीं छूता था,
आज तृष्णा के वशीभूत होकर उसके पैर छू रहा हूँ परन्तु वह फटकार रहा है।)
यहाँ इष्ट (धन) की अप्राप्ति तथा अपमान रूप अनिष्ट वस्तु की प्राप्ति
होने से विषमालकार है ।
भल्लटशतकम्
O greed ! since I chose to follow you, when my self-respect
did not approve of it, when my serenity prevented me, when my
modesty (out of helplessness) was scratching the earth, when my
freedom dissuaded me and when my courage with moving hands
left me, the result has been that the person whom I was not
prepared to touch with my feet is not allowing me now even
to touch his feet.
1.
2.
3.
पततु वारिणि यातु' दिगन्तरं
विशतु वह्निमथ व्रजतु क्षितिम् ।
गुणेषु का
रविरसावियतास्य
सकललोकचमत्कृतिषु
ह, अ, क;
याति म
ह्, अ, क; दिगम्बरम् म
ह, क, अ;
व्रजतु म1
ह, क, अ मयो म
4.
5. ह, क, अ; विशतु म
2
क्षतिः ॥६॥
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
१०
सति धैर्ये गाम्भीर्ये करो व्याधूय व्यसनातिशयेन हस्तविघूननं कृत्वा गते
सति सर्वानेतानवज्ञाय त्वामेवानुगच्छताऽनुवघ्नतानुसरताऽमुना जनेन फलमिय-
देतावन्मात्रमेव प्राप्तं लब्धं पूर्वं यः पदा न स्पृष्टः यः पदेनापि न स्पृष्टः कुत्सा
जायते स एव चरणौ स्प्रष्टुं न सम्मन्यते स स्वचरणयोर्मया स्प्रष्टुं समीपतया
नानुमति करोति किचिद्विगर्हयत्येवेति ।
:
जब (मेरे) स्वाभिमान ने स्वीकार नहीं किया, शान्त भाव ने मना किया,
( मेरी स्थिति पर ) जब लज्जा (लज्जित होकर) भूमि कुरेदने लगी, जब (मेरी)
स्वाधीनता ने मुख मोड़ लिया और जब हाथ पटक पटक कर (मेरा) धैर्य चला
गया तब हे तृष्णे ! तुम्हारा अनुगमन करने पर मुझे यही फल मिला है कि
जिस (पुरुष) को मैं पैरों से भी नहीं छूता था वह अब चरण छूने की अनुमति
भी नहीं देता। (अर्थात् जिस को निकृष्ट समझ कर मैं पैरों से भी नहीं छूता था,
आज तृष्णा के वशीभूत होकर उसके पैर छू रहा हूँ परन्तु वह फटकार रहा है।)
यहाँ इष्ट (धन) की अप्राप्ति तथा अपमान रूप अनिष्ट वस्तु की प्राप्ति
होने से विषमालकार है ।
भल्लटशतकम्
O greed ! since I chose to follow you, when my self-respect
did not approve of it, when my serenity prevented me, when my
modesty (out of helplessness) was scratching the earth, when my
freedom dissuaded me and when my courage with moving hands
left me, the result has been that the person whom I was not
prepared to touch with my feet is not allowing me now even
to touch his feet.
1.
2.
3.
पततु वारिणि यातु' दिगन्तरं
विशतु वह्निमथ व्रजतु क्षितिम् ।
गुणेषु का
रविरसावियतास्य
सकललोकचमत्कृतिषु
ह, अ, क;
याति म
ह्, अ, क; दिगम्बरम् म
ह, क, अ;
व्रजतु म1
ह, क, अ मयो म
4.
5. ह, क, अ; विशतु म
2
क्षतिः ॥६॥
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri