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भल्लट शतकम्
 
समान होने से अर्थश्लेष है । भवानिव सन्मणिः इस अंश में प्रसिद्ध उपमान
सन्मणि को उपमेय बता देने से प्रतीपालङ्कार है । कोऽपि भवानिव सन्मणिः का
अर्थ आपकी तरह कोई ही सन्मणि होती है, प्रत्येक नहीं । आप सन्मणि के
सदृश हैं औौर सन्मणि आपके सदृश है इस भांति तृतीयसदृश व्यवच्छेद होने से
उपमेयोपमालङ्कारध्वनि है। इन वाच्यालङ्कारों से सज्जनप्रशंसारूपवस्तुध्वनि
की भी अभिव्यक्ति हो रही है । एक ही वस्तु सन्मरिण का द्रविण आदि बहुतसी
वस्तुओं के साथ सम्बन्ध कहा है इसलिए उल्लेखालङ्कार भी है ।
 
like you
 
O gentleman ! there rarely exists a jewel-like person who
1 is able to perform multifarious activities of generosity
serving as wealth in distress, as ornament on a festive occasion,
as a resort in personal danger and as a lamp during the night.
 

 
श्रीविशृङ्खलखलाभिसारिका
वर्त्मभिर्घनतमोमलीमसैः ।
 
शब्दमात्रमपि सोढुमक्षमा
 
भूषणस्य गुरिगन: समुत्थितम् ॥ ७॥
घनतमोमलीमसैः वर्त्मभि: ( यान्ती) विशृङ्खलखला श्रीः अभि
सारिका गुणिनः भूषणस्य समुत्थितं शब्दमात्रमपि सोढम् अक्षमा
(भवति)।
 
अथ लक्ष्मी विडम्बयति । श्रीविशृङ्खलखलाभिसारिकेति । घनतमोमलीमसैः
निरन्तरपापमलिने मर्गर्यथाभिसारिका विशृङ्खलं निनियन्त्रणं खलानधमान्
श्रीरपि खलानभिसरति तथा चाभिसारिका गुणिनः सूत्रवतो भूषरणस्य हारनूपुरादेः
शब्दमात्रमपि सोढुमक्षमा भवति । तथा श्रीरपि अलङ्कारभूतमात्रमपि सोढुम-
क्षमासमर्था गुणिनः शब्दमात्रेण पलायते खलं स्वयमेव अभिसरतीति ।
 
लक्ष्मीपक्ष – प्रभूत पापों से मलिन मार्गों से जाने वाली, उच्छृङ्खल होकर
दुष्ट (नीच) पुरुषों के साथ सम्बन्ध रखने वाली लक्ष्मीरूपी वेश्या (समाज के)
भूषण बने हुए गुणी सत्पुरुष से उत्पन्न हुई (कल्याणार्थ कही गई) छोटी
 
सी उक्ति को भी सहन नहीं कर पाती है ।
 
वेश्यापक्ष - निविड अन्धकार से अथवा बादलों के अन्धकार से काले हुए
• मार्गों से जाने वाली तथा उच्छृङ्खलता के साथ चरित्रहीन व्यक्तियों के
 
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